SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टपाहुडभाषा वचनिका। गाथा-वंदमि तंवसावण्णा सीलं च गुणं च वंभचेरं च । सिद्धिगमणं च तेसिं संम्मत्तेण सुद्धभावेण ॥ २७ ॥ संस्कृत-वन्दे तपःश्रमणान् शीलं च गुणं च ब्रह्मचर्य च। ___सिद्विगमनं च तेषां सम्यक्त्वेन शुद्धभावेन ॥२७॥ अर्थ-आचार्य कहैं हैं जो-जे तपकरि सहित श्रमणपणां धारै हैं तिनिकू तथा तिनिके शीलकू बहुरि तिनिके गुणकू बहुरि ब्रह्मचर्यकू मैं सम्यक्त्वसहित शुद्धभावकार वंदूंहूं जातै तिनिकै तिनि गुणनिकरि सम्यक्त्वसहित शुद्धभावकरि सिद्धि कहिये मोक्ष ता प्रति गमन होय है । ___ भावार्थ-पहलैं कह्या जो-देहादिक वंदिवे योग्य नाही, गुण वंदिवे योग्य हैं। अब इहां गुणसहितकू वंदना करी है तहां जे तप धारि गृहस्थपणां छोड़ि मुनि भये हैं तिनिकू तथा तिनिके शीलगुण ब्रह्मचर्य सम्यक्त्व सहित शुद्धभावकरि संयुक्त होय तिनिकू वंदना करी है। तहां शीलशब्दकरि तौ उत्तरगुण लेना, बहुरि गुणशब्दकरि मूलगुण लेने, बहुरि ब्रह्मचर्य शब्दकरि आत्मस्वरूपविर्षं लीनपणां लेनां ॥ २८॥ ___ आगैं कोई आशंका करै जो संयमी वंदने योग्य कह्या तौ समवसरणादि विभूति सहित तीर्थकर ते वंदिवे योग्य हैं कि नाही ताका समाधानकू गाथा कहैं हैं-जो तीर्थकर परमदेव हैं ते सम्यक्त्वसहित तपके माहात्म्यकरि तीर्थकर पदवी पाहैं सोभी बंदिबे योग्य हैं; गाथा-चउसहिचमरसहिओ चउतीसहि अइसएहिं संजुत्तो। अणवरबहुसत्तहिओ कम्मक्खयकारणणिमित्तो ॥२९॥ १ 'तवसमण्णा, छाया-( तपःसमापन्नात् ) 'तवसउण्णा' 'तवसमाणं' येतीन पाठ मुद्रित पदप्राभृतकी पुस्तक तथा उसकी टिप्पणीमें हैं । २ 'सम्मत्तेणेव' ऐसा पाठ होनेसे पादभंग नहीं होता।
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy