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________________ अष्टपाहुडभाषा वचनिका । प्रकार है । सो ऐसा अनुभव अनादिकालतें मिथ्यादर्शन नामा कर्मके उदयतें अन्यथा होय रह्या है । या मिथ्यात्वकी सादि मिथ्यादृष्टीकै तीन प्रकृति सत्तामैं होय है—मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यकप्रकृति ऐसैं । अर याकी सहकारिणी अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ भेदकरि च्यार कषाय नामा प्रकृति हैं । ऐसैं ये सात प्रकृति ही सम्यग्दर्शनके घात करनेवाली हैं; सो इनि सातनिका उपशम भये पहले तो इस जीवकै उपशम सम्यक्त्व होय है । इनि प्रकृतिनिके उपशम होनेके बाह्य कारण सामान्यकरि द्रव्य क्षेत्र काल भाव हैं, तिनिमैं प्रधान द्रव्यमैं तौ साक्षात् तीर्थकरका देखना आदिक हैं, क्षेत्रमैं प्रधान समवसरणादिक हैं, कालमैं अर्द्ध पुद्गल परावर्त्तन संसारका भ्रमण बाकी रहै सो, भावमैं अधःप्रवृत्त करण आदिक हैं । बहुरि विशेषकरि अनेक हैं, तिनिमैं केईकनिकै तौ अरहंतके बिंबका देखना है, अर केईकनिकैं जिनेन्द्रके कल्याण आदिकी महिमाका देखना है, केईकनिकै जातिस्मरण है, अर केईकनिकै वेदनाका अनुभव है, अर केईकनिकैं धर्मश्रवण है, अर केईकनिकैं देवनिकी ऋद्धिका देखना है, इत्यादिक बाह्य कारणनितें मिथ्यात्वकर्मका उपशम भये उपशमसम्यक्त्व होय है । बहुरि इनि सात प्रकृ. तिनिमैं छहका तौ उपशम अथवा क्षय होय अर एक सम्यक्त्व प्रकृतिका उदय होय तब क्षयोपशम सम्यक्त्व होय है, इस प्रकृतिके उदयतें किछू अतीचार मल लागै । बहुरि इनि सात प्रकृतिनिका सत्तामैसूं नाश होय तब क्षायिक सम्यक्त्व होय है । सो ऐसे उपशम आदिक भये जीवका परिणाम भेदकरि तीन प्रकार होय है, ते परिणाम होंय सो अतिसूक्ष्म हैं केवलज्ञानगम्य हैं जातै इनि प्रकृतिनिका द्रव्य पुद्गल परमाणूनिके स्कंध हैं ते अतिसूक्ष्म हैं, अर तिनिमैं फल देनेकी शक्तिरूप अनुभाग है सो अतिसूक्ष्म है सो छद्मस्थके ज्ञान गम्य नाही। अर इनिका
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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