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________________ ३२२ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित अर्थ — जैसैं स्फटिकमणि विशुद्ध है निर्मल है उज्ज्वल है सो परद्रव्य जो पीत रक्त हरित पुष्पादिक तिनिकरि युक्त भया अन्य सा दीखै पीतादिवर्णमयी दीखै, तैसें जीव है सो विशुद्ध है स्वच्छस्वभाव है सो रागद्वेषादिक भावकरि युक्त भया संता अन्य अन्य प्रकार भया दीखै है यह प्रगट है ॥ भावार्थ — इहां ऐसा जाननां जे रागादि विकार हैं ते पुद्गल के विकार हैं अर यहु जीवकै ज्ञानविषै आय झलकै तब तिनितैं उपयुक्त भया ऐसें जाने जो ये भाव मेरेही हैं तिनिका भेदज्ञान न होय तब जीव अन्य अन्य प्रकाररूप अनुभव मैं आवै है तहां स्फटिकमणिका दृष्टान्त है ताकै अन्यद्रव्य पुष्पादिकका डांक लागे तब अन्यसा दीखै है, ऐसें जीवके स्वच्छभावकी विचित्रता जाननीं ॥ ५१ ॥ याहीतैं आगे कहै है जो जेर्ते मुनिकै रागद्वेषका अंश होय है तेतैं सम्यग्दर्शनकूं धारता भी ऐसा होय है; - गाथा - देव गुरुम्मिय भत्तो साहम्मिय संजदेसु अणुरतो । सम्मतमुव्वहंतो झाणरओ होइ जोई सो || ५२ || संस्कृत - देवे गुरौ च भक्तः साधर्मिके च संयतेषु अनुरक्तः । सम्यक्त्वमुद्वहन् ध्यानरतः भवति योगी सः ॥५२॥ अर्थ — जो योगी ध्यानी मुनि सम्यक्त्वकं धारता संता है अर जे तैं यथाख्यात चारित्रकूं न प्राप्त होय है तेतैं देव जो अरहंत सिद्ध अरु गुरु जो शिक्षादीक्षाका देनेवाला इनि विषै तौ भक्तियुक्त होय है इनिकी भक्ति विनय सहित होय है, बहुरि अन्य संयमी मुनि आपसमान धर्मसहित हैं तिनिविषै अनुरक्त है अनुरागसहित होय है सो ही मुनि ध्यानविर्षै प्रीतिवान होय है, अर मुनि होयकारभी देव गुरु साधर्मीनिविषै भक्ति अनुरागसहित न होय ताकूं ध्यानकै विषै रुचिवान न कहिये जातैं ध्यान
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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