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________________ अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका । २७३ भया होय सो जीव करै है, तातैं जिन आज्ञा मांनि यथार्थ श्रद्धान करनां यह उपदेश है ॥ १४८ ॥ आगें कहै है इनि घाति कर्मनिका नाश भये अनंतचतुष्टय प्रकट होय हैं;— गाथा - बलसोक्खणाणदंसण चत्तारि वि पायडा गुणा होंति । घाउके लोयालोयं पयासेदि ॥ १५० ॥ संस्कृत -- बलसौख्यज्ञानदर्शनानि चत्वारोऽपि प्रकटा गुणा भवंति । नष्टे घातिचतुष्के लोकालोकं प्रकाशयति ॥ १५० ॥ अर्थ — पूर्वोक्त घातिकर्मका चतुष्क ताका नाश भये बल सुख ज्ञान दर्शन ये च्यार गुण प्रगट होय हैं, बहुरि जीवके ये गुण प्रकट हों लोकालोककूं प्रकाशै है ॥ भावार्थ —घातिकर्मका नाश भये अनंतदर्शन अनंतज्ञान अनंतसुख अनंतवीर्य ये अनंतचतुष्टय प्रकट होय है । तहां अनंत दर्शनज्ञानतैं तौ षद्रव्यकरि भन्या जो यह लोक तामैं जीव अनंतानंत अर पुद्गल तिनितैं भी अनंतानंत गुणें अर धर्म अधर्म आकाश ये तीन द्रव्य अर असंख्याते लोकाणू इनि सर्व द्रव्यनिके अतीत अनागत वर्त्तमान काल संबंधी अनंतपर्याय न्यारे न्यारेकूं एक काल देखे है अर जाने है, अर अनंतसुखकरि अत्यंत तृप्तिरूप है, अर अनन्तशक्तिकरि अब काहू निमित्तकरि अवस्था पलटै नांही है। ऐसैं अनंतचतुष्टयरूप जीवका निजस्वभाव प्रगट होय है तातैं जीवके स्वरूपका ऐसा परमार्थकरि श्रद्धान करनां सो ही सम्यग्दर्शन है ॥ १५० ॥ आगैं जाकै अनंतचतुष्टय प्रगट होय ताकूं परमात्मा कहिये है ताके अनेक नाम हैं तिनिमैं केतेक प्रगटकरि कहिये है; - अ० व० १८
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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