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________________ अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका । १७९ इसही अंतर्मुहूर्त्तके जन्म मरणमैं क्षुद्र भवका विशेष कहै है, गाथा-वियलिंदए असीदी सही चालीसमे जाणेह । पंचिंदिय चउवीसं खुद्दभवंतो मुहुत्तस्स ॥ २९॥ संस्कृत-विकलेंद्रियाणामशीति षष्टिं चत्वारिंशतमेव जानीहि । पंचेंद्रियाणां चतुर्विंशतिं क्षुद्रभवान् अन्तर्मुहूर्तस्य॥२९॥ अर्थ-इनि अन्तर्मुहूर्त्तके भवनिमैं बेंद्रियके क्षुद्रभव अस्सी तेंद्रियके साठि चौइंद्रियके चालीस पंचेंद्रियके चौवीस ऐसैं–हे आत्मन् ! तूक्षुद्रभव जानि ॥ . भावार्थ-क्षुद्रभव अन्य शास्त्रमैं ऐसैं मिनैं हैं पृथ्वी अप तेज वायु साधारण निगोदके सूक्ष्म बादरकरि दश अर सप्रतिष्ठित वनस्पति एक ऐसैं ग्यारह स्थानकके भव तो एक एकके छह हजार बार ताके छ्यासठि हजार एकसौ बत्तीस भये, बहुरि इस गाथामैं कहे ते बद्रिय आदिके दोयसौ च्यार ऐसैं ६६३३६ एक अन्तर्मुहूर्तमैं क्षुद्रभव कहै है ॥ ३९॥ ___ आगैं कहै है कि हे आत्मन् ! तू इस दीर्घसंसारविर्षे ऐसे पूर्वोक्त प्रकार सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयकी प्राप्ति बिना भ्रम्या यातें अब रत्नत्रय अंगीकार करि, गाथा-रयणत्तये अलद्धे एवं भमिओसि दीहसंसारे। इय जिणवरेहि भणियं तं रयगत्तं समायरह ॥३०॥ संस्कृत-रत्नत्रये अलब्धे एवं भ्रमितोऽसि दीर्घसंसारे । इति जिणवरैर्भणितं तत् रत्नत्रयं समाचर ॥३०॥ ___ अर्थ—हे जीव ! तू सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र जो रत्नत्रय ताकू न पाये या इस दीर्घ अनादिसंसारविर्षे पूर्वै कह्या तैसैं भ्रम्या ऐसा जानिकरि अब तू तिस रत्नत्रयका आचरणकरि, ऐसैं जिनेश्वरदेव कह्या है ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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