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________________ ... १७९ विषय पत्र अनंत वार मरणसे माताओंके अश्रूओंकी तुलना समुद्र जलसे अधिक है। १७४ अनंत जन्मके नख तथा केशोंकी राशि भी मेरुसे अधिक है। ... १७४ जल थल आदि अनेक तीन भुवनके स्थानोंमें बहुत वार निवास किया। १७५ जगतके समस्त पुद्गलोंको अनंतवार भोगा तो भी तृप्ति नहीं हुई। ... १७५ तीन भुवन संबंधी समस्त जल पीया तौ भी प्यास न शान्त हुई। ... १७६ अनंत भवसागर अनेक शरीर धारण किये जिनका कि प्रमाण भी नहीं। १७६ विषादि द्वारा मरणकर अनेकवार अपमृत्युजन्य तीव्र दुःख पाये। ... १७७ निगोदके दुःखोंका वर्णन। ... ... १७८ क्षुद्र भवोंका कथन । ... ... ... रत्नत्रय धारण करनेका उपदेश। ... ... १७९ रत्नत्रयका सामान्य लक्षण । ... ... १८. जन्म मरण नाशक सुमरणका उपदेश । ... १८. टीकाकार वर्णित १७ सुमरणोंके भेद तथा सर्वके लक्षण । ... ... १८१ द्रव्य श्रमणका त्रिलोकीमें ऐसा कोई भी परमाणु मात्र क्षेत्र नहीं जहां कि जन्म मरणको प्राप्त नहीं हुआ भावलिंगके विना बाह्य जिनलिंग प्राप्तिमें भी अनंत काल दुःख सहे। ... ... १८४ पुलकी प्रधानतासे भ्रमण। ... ... १८५ क्षेत्रकी प्रधानतासे भ्रमण और शरीरके रोग प्रमाणकी अपेक्षासे दुःखका वर्णन। ... . अपवित्र गर्भ-निवासकी अपेक्षा दुःखका वर्णन । ... ... १८७ बाल्य अवस्था संबंधि वर्णन। .... ... ... १८८ शरीरसंबंधि अशुचित्वका विचार। ... ... १८९ कुटम्बसे छूटना वास्तविक छूटना नहीं किंतु भावसे छूटनाही वास्तविक छूटना है। ... मुनि बाहुबलीजीके समान भावशुद्धिके विना बहुत कालपर्यंत सिद्धि न भई। ... ... ... १९० मुनि पिंगलका उदाहरण तथा टीकाकार वर्णित कथा। ... वशिष्ट मुनिका उदाहरण और कथा।... भावके विना चौरासी योनियोंमें भ्रमण । ... १८६ .. १९२ ...१९४
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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