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विषय
पत्र
बोधपाहुड (षट्जीवहितंकर ) का संक्षिप्त कथन। ... सर्वज्ञप्रणीत तथा पूर्वाचार्यपरंपरागत-अर्थका प्रतिपादन .
भद्रबाहुश्रुतकेबलिके शिष्यने किया है ऐसा कथन । श्रुतिकेबलि भद्रबाहुकी स्तुति। ... ... ...
भावपाहुड जिनसिद्धसाधुवंदन तथा भावपाहुड कहनेकी सूचना । ... ... १६१ द्रव्यभावरूपलिंगमें गुणदोषोंका उत्पादक भावलिंगही परमार्थ है। ... बाह्यपरिग्रहका त्याग भी अंतरंगपरिग्रहके त्यागमेंही सफल है। ... करोडोंभव तप करने परभी भावके विना सिद्धि नहीं। ... ... १६५ भावके विना ( अशुद्ध परिणतिमें ) बाह्य त्याग कार्यकारी नहीं। ... १६५ मोक्षमार्ग में प्रधान भावही है अन्य अनेक लिंग धारनेसे सिद्धि नहीं। ... १६६ अनादि कालसे अनंतानंत संसारमें भावरहित बाह्यलिंग अनंतवार छोड़े तथा ग्रहण किये हैं। ...
... १६६ भावके विना सासांरिक अनेक दुक्खोंको प्राप्त हुआ है इसलिये जिनोक्त
भावनाकी भावना करो। नर्कगतिके दुक्खोंका वर्णन। ... तिर्यंच-गतिके दुक्खोंका वर्णन। ...
... ... ... १६८ मनुष्यगतिके दुक्खोंका कथन। ... ... ... ... १६९ देवगतिके दुक्खोंका निरूपण। ... द्रव्यलिंगी कंदी आदि पांच अशुभ भावनाके निमित्तसे नीच देव होता है। १७० कुभावनारूप भाव कारणोंसे अनेकवार अनंतकाल पार्श्वस्थ भावना
भाकर दुखी हुआ। ... ... ... ... ... १७१ हीनदेव होकर महर्द्धिकदेवोंकी विभूति देखकर मानसिक दुःख हुआ। ... १७१ मदमत्त अशुभभावनायुक्त अनेक वार कुदेव हुआ। ... ... १७२ गर्भजन्य दुःखों का वर्णन।... ... ... ... ... १७३ जन्म धारण कर अनंतानंत वार इतनी माताओंका दूध पीया कि जिसकी
तुलना समुद्रजलसे भी अधिक है। ... ... ... १७३