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________________ विषय. दर्शनकी ( मतकी ) हस्ति कहां पर कैसे है। कल्याण तथा अकल्याणका निश्चयायक सम्यग्दर्शन ही है । कल्याण अकल्याणके जाननेका फल। ... ... जिन वचन ही सम्यक्त्वके कारण होनेसे दुःखके नाशक हैं। जिनागमोक्त दर्शन ( मत ) के भेषोंका वर्णन । सम्यग्दृष्टीका लक्षण। .... ... ... .... निश्चय व्यवहार भेदात्मक सम्यक्त्वका स्वरूप ।.... ... रत्नत्रयमें भी मोक्षसोपानकी प्रथम श्रेणि (पेरि) सम्यग्दर्शनही है अत ___ एव श्रेष्ठ रत्न है तथा धारण करने योग्य है। .... ... ३२ विशेष न हो सके तो जिनोक्त पदार्थ श्रद्धान ही करना चाहिये क्यों कि वह जिनोक्त सम्यक्त्व है। ... ... जो दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप, विनय, इन पंचात्मकतारूप हैं वे वंदना योग्य हैं तथा गुणधारकोंके गुणानुवाद रूप हैं। ... ... ३३ यथा जात दिगम्बर स्वरूपको देखकर मत्सर भावसे जो विनयादि नहीं ___ करै है वह मिथ्या दृष्टि है। नहीं वंदना करने योग्य कोन । वंदना करने योग्य कोन । मोक्षमें कारण क्या है। ... गुणों में उत्तरोत्तर श्रेष्ठपना। ज्ञानादि गुणचतुष्ककी प्राप्ति में ही निस्संदेह जीव सिद्ध है । सुरासुरवंद्य अमूल्य रत्न सम्यग्दर्शन ही है। ... सम्यक्त्वका माहात्म्य । स्थावर प्रतिमा अथवा केवल ज्ञानस्थ अवस्था। जंगम प्रतिमा अथवा कर्म देहादि नाशके अनंतर निर्वाण प्राप्ति । सूत्र पाहुड सूत्रस्थ प्रमाणीकता तथा उपादेयता। ... भव्य( त्व ) फलप्राप्तिमें ही सूत्र मार्गकी उपादेयता ३४ ३५ ३७ ४१ .. ४२
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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