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________________ ॥श्री॥ विषयसूची। विषय. दर्शनपाहुड। भाषाकारकृत मंगलाचरण, देशभाषा लिखनेकी प्रतिज्ञा। .... ... १ भाषा वचनिका वनानेका प्रयोजन तथा लघुताके साथ प्रतिज्ञा, व मंगल। २ कुंदकुंदस्वामिकृत भगवानको नमस्कार, तथा दर्शनमार्ग लिखनेको सूचना। ३ धर्मकी जड़ सम्यग्दर्शन है, उसके विना वंदनकी पात्रता भी नहीं। ... ४ भाषावचनिका कृत दर्शन तथा धर्मका स्वरूप। ... .... दर्शनके भेद तथा भेदोंका विवेचन। .... .... दर्शनके उद्बोधक चिन्ह । .... .... सम्यक्त्वके आठगुण, और आठगुणोंका प्रशमादि चिन्हों में अन्तभव।... १० सम्यक्त्वके आठ अंग। ... सम्यग्दर्शनके विना बाह्य चारित्र मोक्षका कारण नहीं। ... सम्यक्त्वके विना ज्ञान तथा तप भी कार्यकारी नहीं। ... सम्यक्त्व विना सर्व ही निष्फल है तथा उसके सद्भावमें सर्वही सफल है... कर्मरजनाशक सम्यग्दर्शनकी शक्ति जल-प्रवाहके समान है। जो दर्शनादित्रयमें भ्रष्ट हैं वे कैसे हैं। ... भ्रष्ट पुरुष ही आप भ्रष्ट होकर धर्मधारकों के निंदक होते हैं। जो जिनदर्शनसे भ्रष्ट हैं वे मूल से ही भ्रष्ट हैं और वे सिद्धिको भी प्राप्त नहीं कर सकते। ... ... ... ... २२ जिन दर्शन ही मोक्षमार्गका प्रधान साधक रूप मूल है। ... दर्शन भ्रष्ट होकर भी दर्शन धारकों से अपनी विनय चाहते हैं वे दुर्गतिके। पात्र हैं। ... ... ... ... ... २४ लज्जादिके भयसे दर्शन भ्रष्टका विनय करै हैं वह भी उसीके समान ( भ्रष्ट ) है। ... ... ... ... ... २५
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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