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________________ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचिता कथा । बहुरि भोग कहनेमैं भोजनादिक उपभोग कहनेमैं स्त्री वस्त्र आभूषण वाहनादिकनिका परिमाण करै । ऐसें जाननां ॥ २५॥ ___ आगें च्यार शिक्षाव्रतनिकू कहै है;गाथा-सामाइयं च पढमं विदियं च तहेव पोसहं भणियं । तइयं च अतिहिपुजं चउत्थ सल्लंहणा अंते ॥ २६ ॥ संस्कृत-सामाइकं च प्रथमं द्वितीयं च तथैव प्रोषधः भणितः। तृतीयं च अतिथिपूजा चतुर्थ सल्खना अन्ते ॥२६॥ ___ अर्थ--सामायिक तो पहला शिक्षाव्रत है तेसैं ही दूजा प्रोषध व्रत है तीजा अथितिका पूजन है चौथा अन्तसमय सल्लेखना व्रत है । ___ भावार्थ--इहां शिक्षा शब्दकरि तौ ऐसा अर्थ सूचै है जो आगामी मुनिव्रत है ताकी शिक्षा इनिमैं है जो मुनि होगा तब ऐसैं रहना होगा। तहां सामायिक कहने तैं तौ राग द्वेषका त्यागकरि सर्व गृहारंभसंबंधी क्रियाते निवृत्ति करि एकान्त स्थानक बैठि प्रभात मध्याह्न अपराह्न किछू कालकी मर्यादकरि अपनां स्वरूपका चितवन तथा पंचपरमेष्ठीकी भक्तिका पाठ पढ़ना तिनिकी वंदना करनी इत्यादि विधान करनां सामायिक जाननां । बहुरि तैसेंही प्रोषध कहिये आ3 चौदसि पर्वनिविर्षे प्रतिज्ञा लेकरि धर्मकार्यनिमैं प्रवर्तनां सो प्रोषध है । बहुरि अतिथि कहिये मुनि तिनिका पूजन करना आहारदान करनां सो अतिथिपूजन है । बहुरि अंतसमयविर्षे कायका अर कषायका कृश करनां समाधिमरण करनां सो अंतसल्लेखना है; ऐसैं च्यार शिक्षाव्रत हैं॥ ___ इहां प्रश्न—जो तत्त्वार्थसूत्रमैं तो तीन गुणव्रतमैं देशव्रत कह्या अर भोगोपभोग परिमाण शिक्षाव्रतमैं कह्या अर सलंखनां न्यारा कह्या सो कैसे ? ताका समाधान--जो यह विवक्षाका भेद है इहां देशव्रत दिव्रतमैं गर्भित है अर सल्लेखना शिक्षाव्रतमैं कह्याहै, किछू विरोध है नाहीं ॥२६॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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