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________________ अष्टपाहुडमें चारित्रपाहुडकी भाषावचनिका। आरौं इनि स्थाननिविर्षे संयमका आचरण कौन प्रकार है सो कहै है। गाथा-पंचेव णुव्वयाइं गुणब्बयाई हवंति तह तिण्णि । सिक्खावय चत्तारि य संजमचरणं च सायारं ॥२३॥ संस्कृत-पंचैव अणुव्रतानि गुणव्रतानि भवंति तथा त्रीणि । शिक्षात्रतानि चत्वारि संयमचरणं च सागारम् ॥२३॥ अर्थ-अणुव्रत पांच गुणव्रत तीन शिक्षाव्रत च्यार ऐसैं बारह प्रकार करि संयमचरण चारित्र है सो सागार है, ग्रंथसहित श्रावककै होय है तारौं सागार कह्या है। इहां प्रश्न-जो यह बारह प्रकार तो व्रतके कहे अर पहलैं गाथामैं ग्यारह नाम कहे तिनिमैं प्रथम दर्शन नाम कह्या तामैं ये व्रत कैसे होय है । ताका समाधान ऐसा जो अणुव्रत ऐसा नाम किंचित् व्रतका है सो पंच अणुव्रतमैं किंचित् इहांभी होय है तारौं दर्शन प्रतिमाका धारकभी अणुव्रती ही है, याका नाम दर्शनही कह्या तहां ऐसा नाम जाननां जो याकै केवल सम्यक्त्वही होय है अर अव्रती है अणुव्रत नाही याकै अणुव्रत अतीचारसहित होय है तातें व्रतीनाम न कह्या दूजी प्रतिमामैं अणुव्रत अतीचाररहित पालै तातें व्रतनाम कह्या है, इहां सम्यक्त्वकै अतीचार टाले है सम्यक्त्वही प्रधान है तारौं दर्शनप्रतिमा नाम है। अन्य ग्रंथनिमैं याका स्वरूप ऐसैं कह्या है जो आठ मूलगुण पालै सात व्यसन त्याग सम्यक्त्व अतीचाररहित शुद्ध जाकै होय सो दर्शन प्रतिमाका धारक है तहां पांच उदंवरफल अर मद्य मांस सहत इनि आठनिका त्याग करै सो आठ मूलगुण हैं । अथवा कोई ग्रंथमैं ऐसे कया है जो पांच अणुव्रत 'पालै अर मद्य मांस मधु इनिका त्याग करै ऐसैं आठ मूलगुण हैं, सो यामैं विरोध नहीं है विवक्षाका भेद है। पांच उदंबरफल अर तीन मकारका
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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