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________________ अष्टपाहुडमें चारित्रपाहुडकी भाषावचनिका । ८७ अर्थ-जिनदेवकी श्रद्धा सम्यक्त्व ताकू मोह कहिये मिथ्यात्त्व ताकरि रहित आराधता जीव है सो एते लक्षण कहिये चिह्न तिनिकार लखिये है जानिये है--प्रथम तौ धर्मात्मा पुरुषनिकै जाकै वात्सल्यभाव होय जैसैं तत्कालकी प्रसूतिवान गऊकै वच्छातूं प्रीति होय तैसी धर्मात्मातूं प्रीति होय, एक तौ ये चिह्न है। बहुरि सम्यत्वादि गुणनिकरि अधिक होय ताका विनय सत्कारादिक जाकै अधिक होय; ऐसा विनय, एक ये चिह्न है । बहुरि दुखी प्राणी देखि करुणा भावस्वरूप अनुकंपा जाकै होय, एक ये चिह्न है; बहुरि अनुकंपा कैसी होय भलै प्रकार दानकरि योग्य होय । बहुरि निग्रंथस्वरूप मोक्षमार्गकी प्रशंसाकार सहित होय, एक ये चिह्न है; जो मार्गकी प्रशंसा न करता होय तौ जानिये याकै मार्गकी दृढ श्रद्धा नाही । बहुरि धर्मात्मा पुरुषनिकै कर्मके उदय तें दोष उपजै ताकू विख्यात न करै ऐसा उपगूहन भाव होय, एक ये चिह्न है । बहार धर्मात्माकू मार्ग तैं चिगता जानि तिसकी थिरता करै ऐसा रक्षण नाम चिह्न है याकू स्थितीकरणभी कहिये । बहुरि इनि सर्व चिह्ननिका, सत्यार्थ करनेवाला एक आर्जवभाव है जाते निष्कपट परिणामतें ये सर्व चिह्न प्रगट होय है सत्यार्थ होय है, एते लक्षणनिकार सम्यग्दृष्टीकू जानिये है ॥ ___ भावार्थ-सम्यंत्वभाव मिथ्यात्वकर्मके अभावतें जीवनिका निजभाव प्रगट होय है सो वह भाव तौ सूक्ष्म है छद्मस्थज्ञान गोचर नाही, अर ताके बाह्य चिह्न सम्यग्दृष्टी के प्रगट होय है तिनिकार सम्यत्व भया जानिये है । ते वासल्य आदि भाव कहे ते आपकै तौ आपके अनुभव गोचर होय है अर अन्यके ताकी वचन कायकी क्रिया तें जानिये है, तिनिकी परीक्षा जैसैं आपके क्रियाविशेष तैं होय है तैसैं अन्यकीभी क्रियाविशेष तैं परीक्षा होय है, ऐसा व्यवहार है; जो ऐसा न
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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