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________________ श्री संवेगरंगशाला ५२३ हो अथवा उनको मूल स्थान से अन्य स्थान पर रखा हो, अथवा थकवा दिया हो, दुःख दिया हो, और परस्पर एकत्रित किया हो, कुचले हों इस तरह विविध दुःखों में डाले हों, प्राणों से रहित किया हो उनका भी त्रिविध-विविध क्षमा याचना कर । क्योंकि यह तेरा क्षमापना का अवसर है। और मनुष्य जीवन काल में यदि किसी समय राजा, मन्त्री आदि अवस्था को प्राप्त कर तूने मनुष्यों को पीड़ा दी हो उसकी क्षमा याचना कर । उसमें जिसका दुष्ट चित्त से चिन्तन किया हो, मन में दुष्ट भाव का विचार किया हो, दुष्ट वचन द्वारा-कटु वचन बोला हो या कहा हो और काया द्वारा दुष्ट नजर से देखा हो, न्याय को अन्याय और अन्याय को न्याय रूप सिद्ध करते उसे कलुषित भाव से दिव्य देकर अर्थात् फंदे में फंसाकर उसे जलाया हो, निर्दोष शद्ध किया, और सत्य को असत्य दोष रोपण से उनको दण्ड दिलवाया, अथवा कैद करवाये, उनको बन्धन में डाला, बेड़ी पहनवाई, ताड़न करवाया, या मरवाये, और विविध प्रकार से शिक्षा करवाई, तथा उनको दण्ड दिलवाया, मस्तक मुंडन करवाया, अथवा घुटने, हाथ, पैर, नाक, होंठ, कान आदि अंगोपांगों का छेदन करवाया, और शस्त्रों को लेकर उसके शरीर को छीलकर अथवा काटकर चमड़ी उतारकर, खार से सर्व अंग जलाया, उनको यन्त्रों से पीलन किया, अग्नि से जलाया, खाई में फैकवाया, अथवा उनको वृक्षादि के साथ लटकाया, और अण्डकोष गलवाये, आँखें उखाड़ दीं, दांत रहित किया और उनको तीक्ष्ण शूली पर चढ़ाया अथवा शिकार में युद्ध के मैदान में तिर्यंच मनुष्यों का छेदन-भेदन अथवा लूटे अंग रहित किए। भगाये, और शस्त्रधारी भी प्रहार करते या नहीं करते अथवा शस्त्र रहित और भागते भी उनको अति तीव्र राग या द्वेष से इस जन्म अथवा अन्य जन्मों में स्वयं अथवा पर द्वारा प्राण मुक्त किया हो उसे भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर । क्योंकि यह तेरा क्षमापना का समय है। तथा पुरुष जीवन में अथवा स्त्री जीवन में रागांध बनकर तने पर द्वारा पर पुरुष आदि में यदि अनार्थ पाप का सेवन किया हो, उसकी भी निन्दा कर । और इस संसार रूपी विषम अटवी में परिभ्रमण करते अत्यन्त रागादि से गाढ़ मूढ़ बनकर तूने कदापि कहीं पर भी विधवादि अवस्था में व्यभिचार रूप में पाप सेवन किया उससे गर्भ धारण किया हो, उसको अति उष्ण वस्तुओं का भक्षण, अथवा कष्टकारी कसैला रस, या तीक्ष्ण खार का पानी पीने से पेट को मसलना अथवा किल डालना इत्यादि प्रयोग द्वारा दूसरे अथवा अपने गर्भ को गलाया हो ,टुकड़े-टुकड़े करके निकाला हो, गिराया हो अथवा नाश करना
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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