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________________ ५२२ श्री संवेगरंगशाला सभारम्भ में इस जन्म में या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा अन्य द्वारा यदि अग्निकाय जीवों की विराधना की हो उनका भी त्रिविध-त्रिविध खिमतखामना कर । क्यों कि यह तेरा खिमत खामना का समय आया है। पंखा ढुलाना, गोफन फेंकना, निःश्वास-उच्छ्वास में, धौंकनी में अथवा फेंक आदि में और शंख आदि बाजे बजाने में इस जन्म या अन्य जन्मों में, स्वयं अथवा पर द्वारा यदि वायु काय जीवों की विराधना की हो उनकी भी त्रिविधत्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा खिमत खामाना का समय आया है । वनस्पति को छीलने से, काटने से, मरोड़ने से, तोड़ने से, उखाड़ने से अथवा भक्षण करने आदि से, क्षेत्र, बाग आदि में इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा पर द्वारा यदि वनस्पतिकाय जीवों की विविध प्रकार से विराधना की हो उसकी भी विविध-त्रिविध क्षमा याचना कर क्योंकि अब तेरा क्षमा याचना का समय है। संख्या से असंख्या केंचुआ, जोंक, शंख, सीप, कीड़े आदि द्वीन्द्रिय जीवों का यदि इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं दूसरों के द्वारा किसी प्रकार मारा हो उनकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर । क्योंकि अब तेरा क्षमा याचना का अवसर है। खटमल, कीड़ा, कंथुआ, चींटी, जू, घीमेल, दीमक आदि तीन्द्रिय जीवों का यदि इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा दूसरों के द्वारा किसी तरह से मारा गया हो उसका भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर । क्योंकि यह तेरा क्षमा याचना का समय है। मधु-मक्खी, टिड्डी, तितली, डांस, मच्छर, मक्खी, भौंरे और बिच्छ आदि यदि चतुरिन्द्रिय जीवों का इस जन्म या अन्य जन्मों में स्वयं अथवा अन्य द्वारा विराधना की हो, उनकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि अब तेरा क्षमा याचना का समय है। सर्प, नेवला, गौंघा, छिपकली और उसके अण्डे आदि चहा, कौआ, सियार, कुत्ते या बिलाड़ आदि पंचन्द्रिय जीवों का यदि हास्य या द्वेष से सप्रयोजन अथवा निष्प्रयोजन क्रीड़ा करते जानते या अजानते इस जन्म अथवा अन्य जन्मों में स्वयं या पर द्वारा नाश किया हो उसका भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा खिमत खामना का समय है। मेंढक, मछली, कछुआ और घड़ियाल आदि जलचर जीवों को, सिंह, हिरण, रीछ, सुअर, खरगोश आदि स्थलचर जीवों को, तथा हंस, सारस, कबूतर, कौंच, पक्षी, तीतर, आदि खेचर जीवों को, इन विविध जीवों को संकल्प से अथवा आरम्भ से इस जन्म अथवा अन्य जन्मों में स्वयं या दूसरों के द्वारा जो-जो विराधना की हो अथवा परस्पर शरीर द्वारा टकराये हों, सामने आते मारे हों, कष्ट दिया हो, डराया
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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