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________________ श्री संवेगरंगशाला ५१६ ज्ञानाचार में :-अकाल समय में, विनय बिना, बहुमान बिना, यथा योग्य उपधान किए बिना सूत्र और अर्थ का अभ्यास करते, पढ़ते हुए को तू रुकावट वाला बना, तथा श्रुत आदि को अश्रुत कहा, अथवा सूत्र, अर्थ या तदुभय के विपरीत करने से भूत, भविष्य या वर्तमान में किसी भी प्रकार में यदि कोई अतिचार सेवन किया हो उन सब का त्रिविध-त्रिविध गर्दाकर । __दर्शनाचार में :-जीवादि तत्त्व सम्बन्धी देश शंका या सर्व शंका, अथवा अन्य धर्म को स्वीकार करने की इच्छा रूप देश या सर्वरूप, दो प्रकार की कांक्षा, तथा दान, शील, तप भाव आदि धर्म के फल विषय में अविश्वास रूप विचिकित्सा को, अथवा पसीने आदि के मेल से मलिन शरीर वाले मुनियों के प्रति दुर्गन्ध को करते और अन्य धर्म की पूजा प्रभावना आदि देखकर अन्य धर्म में मोहित होना, तथा धर्मीजनों की प्रशंसा, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना नहीं करते, तूने भूत, वर्तमान या भविष्य काल सम्बन्धी जो अतिचार सेवन किया हो, उन सबका त्रिविध-त्रिविध से गर्दा कर । चारित्राचार में :-मुख्य जो पाँच समिति और तीन गुप्ति इनमें यदि अतिचार सेवन किया हो, उसमें प्रथम समिति में यदि अनुपयोग से चला हो, दूसरी समिति में अनुपयोग से, वचन उच्चारण किया हो, तीसरी समिति में अनुपयोग से आहार आदि को ग्रहण किया हो, चौथी समिति में अनुपयोग से पात्र आदि उपकरण लिया रखा हो, तथा पाँचवीं समिति में त्याग करने योग्य वस्तू को जयणाविना से त्याग किया हो, तथा पहली गुप्ति के विषय में मन को अनवस्थित-चंचलत्व धारण किया हो, दूसरी गुप्ति में बिना प्रयोजन अथवा प्रयोजन को भी उपयोग रहित वचन बोला, और तीसरी गुप्ति में काया से अकरणीय अथवा करणीय कार्य में उपयोग रहित प्रवृत्ति करना, इस प्रकार आठ प्रवचन माता रूप चारित्र में तीनों काल में यदि कोई भी अतिचार का सेवन किया हो, उन सबका भी त्रिविध-त्रिविध सम्यग् गर्दा कर ! तथा राग द्वेष और कषाय आदि वृद्धि द्वारा तूने यदि चारित्र रूप महारत्न को मलिन किया हो उसकी भी विशेषतया निन्दा कर । फिर : बारह प्रकार के तप में :-कदापि किसी तरह अतिचार सेवन किया हो उन सब अतिचार का भी, हे धीर मुनि ! सम्यग् गर्दा कर । तथा वीर्याचार में-बलवीर्य-पराक्रम होने पर भी ज्ञानादि गुणों में यदि पराक्रम नहीं किया, उन वीर्याचार के अतिचार की गर्दा कर । तथा यदि इस प्रकार के यति धर्म में अथवा मूल और उत्तर गुण के विषय में यदि अतिचार सेवन किया हो उसकी भी हे धीर
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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