SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवेगरंगशाला १७६ उसे अधिक लाभ हो, ऐसा व्यापार में जोड़ दे, धर्म कार्यों का स्मरण करना, दोषों को सेवन करते रोके, अति मधुर वचनों द्वारा सत्कार्यों की प्रेरणा दे और यदि नहीं माने तो कठोर वचनों से बारम्बार निश्चयपूर्वक प्रेरणा करे। अपने में सामर्थ्य हो तो आजीविका की मुश्किल वाले को सहायता दे, अत्यन्त संकट रूप खड्डे में गिरे हए का उद्धार करे, सारे धर्म कार्यों में उद्यम करने वाले को हमेशा सहायता करे तथा दर्शन, ज्ञान, चारित्र में रहने वाले को सम्यक स्थिर करे। इस तरह अनेक प्रकार से सार्मिक वात्सल्य करते श्रावक अवश्यमेव इस जगत में शासन की सम्यक वृद्धि-प्रभावना को करने वाला होता है । इस तरह श्रावक द्वार के साथ प्रसंगोपात श्राविका द्वार को अर्थ युक्त कहकर अब पौषधशाला द्वार को कहते हैं :-- ___९. पौषधशाला द्वार :-राजा आदि उत्तम मालिक के अधिकार भी तथा उत्तम सदाचारी मनुष्यों से समृद्धशाली गाँव, नगर आदि में पौषधशाला यदि जर्जरित हो गई हो और वहाँ भव भीरु महासत्त्व वाले हमेशा षड्विध आवश्यकादि सद्धर्म क्रिया के रागी श्रावक रहते हों, फिर भी तथा विधिलाभांतराय कर्मोदय के दोष से उद्यमी होने पर भी जीवन निर्वाह कष्ट रूप महा मुश्किल से चलता हो, जैसे दीपक में गिरा हुआ जली हुई पंख वाली तितलियाँ अपना उद्धार करने में शक्तिमान नहीं होती हैं, वैसे पौषधशाला के उद्धार की इच्छा वाले भी उसे उद्धार करने में शक्तिमान नहीं हो तो, स्वयं समर्थ हो, तो स्वयं अन्यथा उपदेश देकर अन्य द्वार का उद्धार करवा दे और इन दोनों में असमर्थ हो तो साधारण द्रव्य से भी उस पौषधशाला का उद्धार करा सकता है। इस विधि से पौषधशाला का उद्धार कराने वाला वह धन्य पुरुष अवश्य ही दूसरों की सत्प्रवृत्ति का कारणभूत बनता है। उसमें डांस मच्छर आदि को भी कुछ नहीं गिनते, उसका रक्षण करते हैं । पौषध-सामायिक में रहे संवेग से वासित, बुद्धिमान संवेगी आत्मा को ध्यान अध्ययन करते देखकर कई जीवों को बोधिबीज की प्राप्ति होती है और अन्य लघुकर्मी इससे ही सम्यक् बोध को प्राप्त करते हैं। पौषधशाला उद्धार कराने से उसको तीर्थ प्रभावना की, गुणरागी को गुण प्राप्ति के लिये प्रवृत्ति करवाई, धर्म आराधना की रक्षा और लोक में अभयदान की घोषणा करवाई । क्योंकि इससे जो प्रतिबोध प्राप्त करेंगे, वे अवश्य मोक्ष के अधिकारी बनते हैं, इससे उनके द्वारा होने वाली हिंसा से अन्य जीव का रक्षण होता है । यद्यपि उपासक दशा आदि शास्त्रों में पुरुष, सिंह, आनन्द, श्रावक आदि प्रत्येक को अपने-अपने घर में पौषधशालाएँ थीं ऐसा कहा है, तो भी अनेकों की साधारण एक पौषधशालाएँ
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy