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________________ श्री संवेगरंगशाला १७७ करना । और रागी को औषध के समान जिससे दोषों- रोग को रोक सकता है । और जिससे पूर्व कर्मों को क्षय होता है वह उस मोक्ष ( आरोग्यता) का उपाय जानना ! उत्सर्ग सरल राजमार्ग है और अपवाद उसका ही प्रतिपक्षी है उत्सर्ग से जो सिद्ध नहीं हो उसे अपवाद मार्ग सहायता देकर स्थिर करता है अर्थात् जो उत्सर्ग का विषय नहीं हो उसे अपवाद सहायता से सिद्ध करता है । मार्ग को जानने वाला भी कारणवश उजड़ मार्ग में दौड़ने वाला क्या पैर से नहीं चलता है ? अथवा तीक्ष्ण कठोर क्रिया को सहन नहीं करने वाला, सामान्य क्रिया करने वाला, वह क्या क्रिया नहीं करता है ? जैसे ऊँचे की अपेक्षा से नीचा और नीचे की अपेक्षा ऊँचे की प्रसिद्धि है, वैसे एक-दूसरे की प्रसिद्धि प्राप्त करते उत्सर्ग और अपवाद मार्ग दोनों भी बराबर हैं । कहा है कि जितने उत्सर्ग हैं उतने ही अपवाद हैं और जितने अपवाद हैं उतने ही उत्सर्ग मार्ग हैं । ये उत्सर्ग और अपवाद मार्ग दोनों अपने-अपने स्थान पर बलवान हैं, और हितकर बनते हैं, और स्वस्थान पर स्थान को वे विभाग करते हैं। वह उस वस्तु से अर्थात् वह उस द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, पुरुषादि की अपेक्षा निर्णित होता है । उत्सर्ग से निर्वाह कर सके, ऐसे उत्सर्ग रूप विधान किया है, वह अपने स्थान और निर्बल को वह उत्सर्ग विधान पर स्थान कहलाता है । इस तरह अपने स्थान अथवा परस्थान कोई भी द्रव्यादि वस्तु कारण बिना निरपेक्ष नहीं होता है । अपवाद भी ऐसा वैसा नहीं है, परन्तु स्थिर वास रहता है और उसे भी निश्चय गीतार्थ ने पुष्ट गाढ़ कारण बतलाया है । इस विषय पर अधिक कहने से क्या ? अब प्रस्तुत विषय को कहते हैं । शुद्ध वस्त्र आदि की प्राप्ति होती हो तब पूर्व में गाढ़ कारण से अशुद्ध लिए हो उसे विधिपूर्वक त्याग करे (परठ दे), निरोगी होने के पश्चात् बीमारी आदि के कारण भी जो-जो अन्न औषध आदि अशुद्ध उपयोग लिया हो, उसका प्रायश्चित स्वीकार करे । ६. साध्वी द्वार : - इस तरह साधु द्वार कहा है, उसी तरह साध्वी द्वार भी जान लेना । केवल स्त्रीत्व होने से उनको उपाय बहुत होते हैं । आर्याएँ परिपक्व स्वादिष्ट फलों से भरी हुई बेर वृक्ष समान हैं, इसलिए वह गुप्ति रूपी वाड द्वारा रक्षण घिरी हुई भी स्वभाव से ही सर्वभोग होती है । इसलिए प्रयत्नपूर्वक हमेशा सर्व प्रकार से रक्षण करने योग्य है, यदि उनका किसी शत्रु द्वारा अथवा दुराचारी व्यक्तियों से अनर्थ होता हो तब अपना सामर्थ्य न हो तो साधारण द्रव्य का खर्च करके भी संयम में विघ्न करने वाले निमित्त को
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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