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________________ ८० श्री संवेगरंगशाला (अब ऐसा करूँ कि जिससे आचार्य श्री के वचन को असत्य बना दूं) ऐसा सोचकर वह कुशिष्य अरण्य भूमि में गया। वहाँ मनुष्य के संचार बिना एक तापस के आश्रम में रहा और नदी के किनारे पर उग्रतप करने लगा। उसके बाद वर्षाकाल आया, तब उसके तप के प्रभाव से प्रसन्न होकर देवी ने 'इस साधु को पानी द्वारा नदी खींचकर नहीं ले जाए' ऐसा विचार कर नदी का प्रवाह सामने किनारे पर घुमा दिया । इस तरह नदी का प्रवाह दूसरे किनारे पर बहते हुए देखकर उस प्रदेश के निवासी लोगों ने उसके गुण अनुसार उसका नाम कूल बालक रखा। उस मार्ग से प्रस्थान करते साथवाहों में से भिक्षा लेकर जीवन व्यतीत करता था। इधर चम्पानगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र पराक्रम से शत्रु समूह को हराने वाला अशोक चन्द्र नामक राजा था। उसके हल्ल और विहल्ल नाम से छोटे भाई थे उनको श्रेणिक ने श्रेष्ठ हाथी और हार भेंट रूप में दिया था। इसके अतिरक्त दीक्षा लेते समय अभय कुमार ने भी अपनी माता को रेशमी वस्त्र और दो कुण्डल भेंट दिये थे। उन वस्त्र, हार और कुण्डलों से शोभित हाथी ऊपर बैठे हुए उनको चम्पानगरी त्रिमार्ग, चार मार्ग आदि में घूमते दो गंदक देव के समान क्रोडा करते देखकर ईर्ष्या से रानी ने अशोक चन्द्र को कहा कि-हे देव ! वस्तुतः राजलक्ष्मी तो तुम्हारे भाइयों को मिली है कि जिससे इस तरह अलंकृत होकर हाथी के कन्धे पर बैठकर वे आनन्द का अनुभव करते हैं, और तुम्हें तो केवल एक कष्ट के बिना राज्य का दूसरा कोई फल नहीं है इसलिए आप यह हाथी आदि रत्न उनके पास से माँगो। राजा ने कहा-हे मृगाक्षी ! पिताजो ने स्वयं छोटे भाइयों को यह रत्न दिये हैं उनसे माँगने में मुझे लज्जा नहीं आयेगी ? उसने कहा हे नाथ ! दूसरा अच्छा राज्य उनको देकर हाथी आदि रत्नों को लेने में आपको लज्जा कैसे आयेगी? इस तरह बार-बार उससे तिरस्कारपूर्वक कहने से राजा ने एक समय हल्ल, विहल्ल को प्रेमपूर्वक बुलाकर इस प्रकार कहा-हे भाइयों! मैं तुम्हे अन्य बहुत हाथी, घोड़े, रत्न, देश आदि देता हूँ और तुम मुझे बदले में यह श्रेष्ठ हस्तिरत्न दे दो। 'इस पर विचार करेंगे।' ऐसा कहकर वे अपने स्थान पर गये और बलजबरी कहीं ग्रहण कर ले इस भय से रात्री के समय में हाथी पर बैठकर कोई मनुष्य नहीं जाने इस तरह निकलकर उसने वैशाली नगर में चेतक राजा का आश्रय लिया, उनके जाने के बाद अशोक चन्द्र को जानकारी मिली तब विनय से हल्ल, विहल्ल को शीघ्र भेजने के लिए दूत द्वारा चेतक राजा को निवेदन किया । चेतक ने कहा कि मैं उन्हें बलात्कार से उनको किस तरह निकाल दूं ?
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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