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________________ हेतु, वीतराग परमात्मा को वंदन करने के द्वारा फल प्राप्ति से है, अतः वो कायोत्सर्ग भी वंदन ही कहा जाता है। उस समय में पाँव से जिनमुद्रा और हाथों से योगमुद्रा की जाती है। मात्र कायोत्सर्ग में पाँव की जिनमुद्रा और हाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में होता है। और प्रणिधानत्रिक मुक्ताशुक्ति मुद्रा से किया जाता है। मुख्यत्वे तीन मुद्राओं का उपयोग होने पर भी, उपमुद्राओं का उपयोग भी प्रसंगवत् अनेक स्थानो पर होता है । गीतार्थ पुरुषों की परंपरा एवं मर्यादा का पालन करते हुए तथा गुरुगम से विस्तृत ग्रंथो से स्पष्टता पूर्वक ज्ञान प्राप्त कर,विधिपूर्वक वंदन करने के लिए आत्मार्थीजीवों को प्रयत्न करते हुए आगे बढना चाहिये। ८ प्रणिधान त्रिक पणिहाण-तियं चेहअ - मुणि-वंदण-पत्थणा-सरूवं वा. मण-वय-काएगतं, सेस -तियत्यो य पयहुति ॥१७॥ अन्वय :- चेइअ -मुणि-वंदण-पत्थणा -सरुवं वा मण वय-काएगत्तं पणिहाण-तियं, सेस -तियत्यो पयडुत्ति ॥१९॥ . शब्दार्थ:-पणिहाण-तियं-प्रणिधान त्रिक,चेइअ चैत्य, मुणि-मुणि, वंदन-वंदन, पत्थणा प्रार्थना, सरुवं-स्वरुप, वा= अथवा, चेइअ-वंदण-मुणि-पत्थणा-सरुवं चैत्य और मुनि को वंदन तथा प्रार्थना स्वरूप, सेस तियत्थो शेष त्रिक का अर्थ, पयडु- सुगम, ति-इस प्रकार, . गाथार्थ :-चैत्यवंदन मुनिवंदन और प्रार्थना का स्वरूप अथवा,मन, वचन, काया.की एकाग्रता-ये प्रणिधान त्रिक है। शेष त्रिकों का अर्थ सुगम है। इस प्रकार दसत्रिक पूर्ण हुए ॥१९॥ विशेषार्थ :- “जावंति चेइयाई" सूत्र में तीन लोक के चैत्यों को नमस्कार किया | गया है, अतः यह सूत्र चैत्यवंदन सूत्र कहलाता है। "जावंत के वि साहु सूत्र में ढाई दीप में रहे हुए मुनि महात्माओं को नमस्कार करने में आया है अतःमुनिवंदन सूत्र कहलाता है। और जयवीयराय सूत्र में भवसे वैराग्य, मार्गानुसारिता, इष्ट फल की सिद्धि, लोक विरूद्ध का त्याग , गुरूजनों की पूजा, परोपकार भाव, सदगुरू का योग,और भवपर्यन्त सदगुरू के वचन की सेवा, इन नौ वस्तुओं की याचना वीतराग परमात्मा के पास की है.
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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