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________________ (१३३) अपना विषय है तेते विशद स्पष्ट जाने हैं सर्वकू न जाने, ताते एकदेश कहिये. बहुरि मतिज्ञान है सौं इन्द्रियमनकरि उपजै है ताते व्यवहारकरि इन्द्रियनिके संबंधौं विशद भी कहिये. ऐसे प्रत्यक्ष भी है परमार्थ परोक्ष ही है. बहुरि श्रुतज्ञान है सो परोक्ष ही है जातें यह विषद स्पष्ट जानैं नाहीं॥ भागें इन्द्रियज्ञान योग्य विषयकू जान है ऐसें कहै हैं.इंदियजमदिणाणं जुग्गंजाणेदि पुग्गलं दव। . . माणसणाणं च पुणो सुयविसयं अक्खविसयं च ॥ .. भाषार्थ-इन्द्रियनित उपज्या जो मतिज्ञान सो अपने योग्य विषय जो पुद्गल द्रव्य ताकू जाण है. जिस इन्द्रियका जैसा विषय है तैसे ही जाणै है. बहुरि मनसम्बधी ज्ञान है सो श्रुतविषय कहिये शास्त्रका वचन सुणै ताके अर्थकुं जान है. बहुरि इन्द्रियकरि जानिये तांकू भी जान है ॥२५८॥ ___आगें इंद्रियज्ञानके उपयोगकी प्रवृत्ति अनुक्र है ऐसे कहै हैं,पंचेंदियणाणाणं मज्झे एगं च होदि उवजुतं । मणणाणे उवजुत्ते इंदियणाणंण जाएदि ॥ २५९ ॥ ____ भाषार्थ-पांचूं ही इंद्रियनिकरि ज्ञान हो है सो विनिमेंझू एकेन्द्रियद्वारकरि ज्ञान उपयुक्त होय है. पांचूं ही एक काल उपयुक्त होय नाही. बहुरि मन ज्ञानकरि उपयुक्त होय सब इन्द्रियज्ञान नाहीं उपजे है. भावार्थ-इन्द्रिय मनसम्बन्धी
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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