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________________ 94 : विवेकविलास के साथ बैठकर खाना चाहिए। कुक्षिभरिन कः कोऽत्र वह्वाधारः पुमान् पुमान्। ततस्तत्कालमायातान् भोजयेद्वान्धवादिकान्॥39॥ . इस संसार में अपनी उदरपूर्ति कौन नहीं करता? इसलिए जो बहुत लोगों का आधारभूत हो वही पुरुष कहलाता है। इससे भोजन के अवसर पर आए हुए अपने सगे सम्बन्धियों को और दूसरे लोगों को भी अवश्य भोजन पर न्यौतना चाहिए। दत्वा दानं सुपात्राय स्मृत्वा वा श्रद्धयान्वितम्। .. येऽश्रन्ति ते नरा धन्याः किमानैनराधमैः।।40॥ जो व्यक्ति सुपात्र को दान देकर अथवा सुपात्र का संयोग नहीं हो तो श्रद्धा से, भावनापूर्वक भोजन करता है, वह धन्य है। अन्यत्र अपना ही पेट भरने वाले अधमाधमों के हाथों से क्या कोई उत्तम कार्य होगा, यह विचार करना चाहिए। ज्ञानयुक्तः क्रियाधारः सुपात्रमभिधीयते। दत्तं बहुफलं तत्र धेनुक्षेत्रनिदर्शनात्॥41॥ ज्ञानी और क्रियापात्र साधु हो तो वह सुपात्र कहा जाता है। जिस प्रकार अल्पावधि की प्रसूता गाय का खिलाना और उत्तम खेत में बुवाई करना लाभप्रद होता है, वैसे ही सुपात्र को आहारादि दिए जाने से पर्याप्त फल मिलता है। . कृतमौनमवक्राङ्गं वहद्दक्षिणनासिकम्। कृतभक्ष्यसमाघ्राणं हतदृग्दोषविक्रियम्॥42॥ नातिक्षारं न चात्यम्लं नात्युष्णं नातिशीतलम्। . नातिशाकं नातिगौल्यं मुखरोचकमुच्चकैः। 43॥ सुस्वादविगतास्वाद विकथापरिवर्जिततम्। . शास्त्रवर्जितनिःशेषाहारत्याग मनोहरम्॥44॥ भक्ष्यपालननिर्मुक्तं नात्याहारमनल्पकम्। प्रतिवस्तुप्रधानत्वं सङ्कल्पास्वादसुन्दरम्॥45॥ सुविज्ञ पुरुष की दाहिनी नासिका बहते समय मौन रहकर, शरीर के सब अवयव सम रखकर, खाने की वस्तु सूंघकर और दृष्टि दोष टालकर, न तो बहुत खारा, न बहुत खट्टा, न बहुत गर्म, न बहुत ठंडा, न बहुत शाकवाला, न बहुत मीठा हो; प्रमाण से न्यूनाधिक नहीं हो, शास्त्र में वर्जित वस्तु से और जिस वस्तु के त्याग की प्रतिज्ञा ली हो, उस वस्तु से रहित, जिसमें डाली गई सब वस्तुएँ श्रेष्ठ और अच्छी तरह पकाने से जिनका स्वाद बहुत मनोहर हो ऐसा, मुँह को अधिक रुचि उत्पन्नकर्ता अन्न, स्वादिष्ठ वस्तु की प्रशंसा और निरस वस्तु की निन्दा छोड़कर भोजन करना चाहिए।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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