SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ धर्मकृत्याहारव्याधिघटिकादीनां वर्णनं नाम तृतीयोल्लासः : 93 जूते पहने हुए, चञ्चल चित्त, केवल भूमि पर बैठकर, पलंग पर बैठकर, आग्नेय, नैर्ऋत्य, वायव्य, ईशान- इन चारों विदिशाओं और दक्षिण दिशा की ओर मुँह रखकर अथवा गन्दे बर्तन में कभी भोजन नहीं करना चाहिए। वर्जिताहारविचारं - आसनस्थपदो नाद्याच्चण्डालैश्च निरीक्षितः। पतितैश्च तथा भिन्ने भाजने मलिनेऽपि च ॥34॥ इसी प्रकार कभी आसन पर पाँव देकर, चाण्डाल और धर्मभ्रष्ट पुरुषों के देखते हुए और खण्डित अथवा मलीन बर्तन में आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। अमेध्यसम्भवं नाद्या दृष्टं भ्रूणादिघातकैः। रजस्वलापरिस्पृष्टमाघातं गोश्वपक्षिभिः ॥35॥ अपवित्र वस्तु से तैयार चीज नहीं खानी चाहिए। गर्भ, स्त्री, बालक इत्यादि की हत्या करने वाले द्वारा देखा हुआ, रजस्वला स्त्री का स्पर्श किया हुआ, गाय, कुत्ते और पक्षियों का सूंघा हुआ भोजन भक्षण नहीं करना चाहिए। अज्ञातागममज्ञातं पुनरुष्णीकृतं तथा। युक्तं चबचबचाशब्दै द्याद्वक्त्रविकारवान्॥36॥ आहार किया जाने वाला अन्न कहाँ से आया हुआ है ? ऐसा जाने बिना और जिसका नाम भी नहीं जानते हों और दो बार गर्म किया हुआ अन्न कभी नहीं खाना चाहिए। ऐसे ही भोजन करते समय 'चब-चब' शब्द नहीं करना चाहिए। मुँह टेढ़ाकर अथवा किसी तरह चेहरा वक्र दीखे, ऐसा भोजन के समय नहीं करना चाहिए। भोजनकाले स्वजनानिमन्त्रिते आह्वानोत्पादितप्रीतिः कृतदेवभिधास्मृतिः। समे पृथौ च नात्युच्चे निविष्टो विष्टरे स्थिरे॥37॥ मातृष्वस्त्रम्बिकाजामिभार्याद्यैः पक्वमादरात्। शुचिभिर्भुक्तवद्भिश्च दत्तमद्याजनैः सह ॥38॥ सुविज्ञ व्यक्ति को चाहिए कि अपने पास में रहते हुए लोगों को बुलाकर, प्रीति उत्पादित करके, भगवन्नाम स्मरणकर और इकसार, गहरा और अधिक ऊँचा नहीं हो ऐसे आसन पर बैठकर मौसी, माता, बहिन या अपनी स्त्री के हाथों तैयार किया गया और पवित्र तथा खाकर तृप्त हुए लोगों का परोसा हुआ अन्न अपने भाई - --- -- -- - -- --- - - -- -- -- -- * उक्त दोनों श्लोक याज्ञवल्क्यस्मृति के मत से तुलनीय है- शुक्तं पर्युषितोच्छिष्टं श्वस्पृष्टं पतितेक्षितम्॥ उदक्यास्पृष्टसङ्घष्टं पर्यायानञ्च वर्जयेत्॥ गोघ्रातं शकुनोच्छिष्टं पदा स्पृष्टश्च कामतः ॥ (याज्ञवल्क्य. 1, 166-167 तुलनीय गरुडपुराण आचार. 96, 64)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy