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________________ 92 : विवेकविलास यदि अजीर्णादि विकार न हो तो मल-मूत्र त्याग करने के बाद क्षणभर में नासिका आदि शरीर के छिद्र और हृदय शुद्ध होता है। डकार दुर्गंध रहित और बिना रस के शुद्ध आते हैं और शरीर व इन्द्रियाँ हल्की व अपना स्वाभाविक कार्य करने में तत्पर होती हैं। भोजनविधि अतिप्रातश्च सन्ध्यायां रात्रौ कुत्सनथ व्रजन्। सव्यायौ दत्तपाणिश्च नाद्यात्पाणिस्थितं तथा॥29॥ सुबह का समय हो तो बहुत शीघ्र, सन्ध्याकाल को, रात्रि को, अन्न की निन्दा करते, रास्ते जाते, वाम पाँव पर हाथ रखकर और खाने की वस्तु वाम हाथ में लेकर भोजन नहीं करना चाहिए। साकाशे सातपे सान्धकारे द्रमतलेऽपि च। कदाचिदपि नाश्रीया दूवीकृत्य च तर्जनीम्॥30॥ कभी मुक्ताकाश स्थल में, धूप में, अन्धेरे में, वृक्ष के नीचे और तर्जनी अङ्गली ऊँची करके भोजन नहीं करना चाहिए, यह दोष है। अधौतमुखहस्तांहिर्ननश्च मलिनांशुकः।। सव्येन हस्तेनोपात्तस्थालो भुञ्जीत न कचित्॥31॥ कभी मुंह, हाथ और पाँव धोये बिना, नग्नावस्था में, गन्दे वस्त्र पहनकर और वाम हाथ से थाली पकड़कर भोजन नहीं करना चाहिए, यह अनुचित है। एकवस्त्रान्वितश्चाई वासा वेष्टितमस्तकः। अपवित्रोऽतिगाद्धयश्च न भुञ्जीत विचक्षणः॥32॥ ज्ञानी पुरुष को कभी एक वस्त्र पहनकर अथवा भीगा वस्त्र धारणकर, वस्त्र से सिर लपेट कर, देह के अपवित्र होते हुए और खाने की वस्तु पर बहुत ही लालच रखते भोजन नहीं करना चाहिए।" उपानत्सहितो व्यग्रचित्तः केवलभूस्थितः। पर्यस्थो विदिग्याम्याननो नाद्यात्कृशासनः॥33॥ * कूर्मपुराण में कहा गया है कि न अन्धकार में, न आकाश के नीचे और न देवस्थान में ही भोजन करे। एक वस्त्र पहनकर, सवारी या शय्या पर बैठकर, बिना जूते उतारे और हंसते हुए तथा रोते हुए भी भोजन नहीं करना चाहिए-नान्धकारे न चाकाशे न च देवालयादिषु ॥ नैकवस्त्रस्तु भुञ्जीत न यानशयनस्थितः । न पादुकानिर्गतोऽथ न हसन् विलपन्नपि ।। (कूर्म. उपरिभाग 19, 22-23) **मार्कण्डेयपुराण में आया है कि बिना नहाये, बिना बैठे, अन्यमनस्य होकर, शय्या पर बैठकर या लेटकर, केवल पृथ्वी पर बैठकर, बोलते हुए, एक वस्त्र पहनकर तथा भोजन की ओर देखने वाले मनुष्य को न देकर कदापि भोजन नहीं करें- नास्नातो नैव संविष्टो न चैवान्यमना नरः ॥न चैव शयने नोामुपविष्टो न शब्दकृत्। न चैकवस्त्रो न वदन् प्रक्षतामप्रदाय च ॥ (मार्कण्डेय. 34, 59-60) .
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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