SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 250 : विवेकविलास इत्येवं कथितमशेषजन्मभाजामाजन्म प्रतिपदमत्र यद्विधेयम्। कुर्वन्तः सततमिदं च केऽपि धन्याः साफल्यं विदधति जन्मनो निजस्य॥444॥ मनुष्यों को आजीवन पद-पद पर जिन कृत्यों को करना होता है, उनको मैंने यहाँ कहा है। जो कोई धन्य पुरुष इस रीति से आचरण करेगा वह अपने जन्म को अवश्य ही सफल करेगा। इति श्रीजिनदत्तसूरि विरचित विवेकविलासे जन्मचर्यायां विशेषोपदेशो नामाष्टम उल्लासः॥8॥ इस प्रकार श्रीजिनदत्तसूरि विरचित 'विवेक विलास' में जन्मचर्या अन्तर्गत विशेषोपदेश नामक आठवाँ उल्लास पूर्ण हुआ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy