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________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 249 समझता हो, पण्डित पुरुषों की मण्डली में आत्मश्लाघा करे और बिना सुने ही शास्त्र की व्याख्या करे, उस पुरुष की बुद्धि को तो नमस्कार है (अर्थात् ऐसा नहीं करे ) । मनुष्येषु क्रकचक्रौञ्श्चश्चाह -- उद्वेजको ऽतिचाटूक्त्या मर्मस्पर्शी हसन्नपि । निर्गुणो गुणिनिन्दाकृत्क्रकचप्रतिमः पुमान् ॥ 439 ॥ जो व्यक्ति बहुत मीठे वचन बोलते हुए त्रास उत्पन्न करे, हँसते-हँसते दूसरे के मर्म को स्पर्श करता हो और स्वयं निर्गुणी होते हुए गुणी पुरुषों की निन्दा करे ऐसे पुरुष को तो केकड़े की प्रतिमा के तुल्य ही जानना चाहिए । प्रसभं पाठको ऽविद्वानदातुरभिलाषकः । गातानवसरज्ञश्च कपिकच्छूसमा इमे ॥ 440 ॥ जो स्वयं अविद्वान होते हुए भी दिखावे के नाम पर उच्च स्वर से पढ़ता हो, जो कृपण से धन की अभिलाषा रखता हो और जो अवसर को ज्ञात किए बिना ही जाता हो - ऐसे तीनों पुरुष क्रौञ्च के समान ही कहने चाहिए । महोद्वेगकरानामाह दूतो वाचिकविस्मारी गीतकारी खरस्वरः । गृहोश्रमरतो योगी महोद्वेगकरास्त्रयः ॥ 441 ॥ जदूत होकर भी स्वामी के संदेश को विस्मृत कर जाए, गायक होकर भी गदर्भ-स्वर में गाए और योगी होकर गृहस्थाश्रम में रहता हो - ऐसे तीनों पुरुषों को महोद्वेगी (अति उद्वेग करने वाले) ही जानने चाहिए । ज्ञातदोषजनश्लाघी गुणिनां गुणनिन्दकः । राजाद्यवर्णवादी च सद्योऽनर्थस्य भाजनम् ॥ 442 ॥ जिसके दोष सामने दिखाई देते हों किन्तु उसकी प्रशंसा करने वाला, गुणज्ञ की सामने ही निन्दा करने वाला और राजा इत्यादि का अवर्णवाद उच्चारित करे, ऐसे व्यक्ति तत्काल सङ्कट से घिर जाते हैं । गृहदुश्चरितं मन्त्रं वित्तायुर्मर्मवञ्चनम् । अपमानं स्वधर्मं च गोपयेदष्ट सर्वदा ॥ 443 ॥ व्यक्ति को आठ चीजों को सदैव छिपाकर रखना चाहिए - 1. घर के छिद्र, 2. मन्त्र, 3. धन, 4. आयु, 5. मर्मवचन ( अपनी कमजोरी), 6. ठगाई, 7. अपमान और 8. स्वधर्म । उपसंहरन्नाह
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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