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________________ अथ पापोत्त्पत्तिकारण नामाख्यं नवमोल्लासः॥१॥ अथ पापादीनां प्रश्नाह - प्रत्यक्षमप्यमी लोकाः प्रेक्ष्य पापविजृम्भितम्। . मूढा किं न विरज्यन्ते ग्रहिला इव दुर्ग्रहात्॥1॥ (इस उल्लास में पाप, उनकी उत्पत्ति और जीवन साफल्य विषयक कथन हैं, सप्रश्न उल्लास के आरम्भ में कहा है) जब मूढ़ लोग पाप का फल प्रत्यक्ष देखते हैं, तो भी कदाग्रह से पागल तुल्य ही होते हैं, क्या वे संसार से वैराग्य नहीं पाते हैं ? अथ पञ्चपातकं - वधन प्राणिनां मद्यपानेनानृतजल्पनैः । चौर्यैः पिशुनभावैः स्यात्पातकं श्वभपातकम्॥2॥ जीवहिंसा, मद्यपान, मिथ्याभाषण, चोरी और चुगलखोरी- ये पाँच अशुभ कर्म मनुष्य को नरक में पहुँचाने वाले और बन्धक हैं। बन्धकपापादीनां - परवञ्चमहारम्भ . परिग्रहकदाग्रहैः। परदाराभिषङ्गैश्च पापं स्यात्तापवर्द्धनम्॥3॥ दूसरे को छलने से, महारम्भ करने से, परिग्रह रखने से, कदाग्रह और परस्त्री के सङ्ग से सन्ताप बढ़ाने वाला पापकर्म बन्धाने वाला होता है। अभक्ष्यैर्विकथालापैरसन्मार्गप्ररूपणैः। अनात्मयन्त्रणैश्चापि स्यादेनस्तेन तत्त्यजेत्॥4॥ अभक्ष्य भक्षण, विकथा और बुरी प्ररूपणा और अपनी आत्मा को वश में न रखने से पाप बाँधा जाता है। इसलिए इन प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए। लेश्याभिः कृष्णकापोत नीलाभिर्दुष्टचिन्तनैः। ध्यानाभ्यामार्तरोद्राभ्यां दुःखकृत्कलुषं भवेत्॥5॥
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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