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________________ 200 : विवेकविलास स्थावर विष भक्षण नहीं करना चाहिए और जङ्गम विष को धारण करने वाले सर्पादि को भी हाथ से स्पर्श नहीं करना चाहिए। जाङ्गल्याः कुरुकुल्लायास्तोत्तलाया गरुत्मतः। विषार्तस्य जनस्यास्य कः परित्रायकः परः। 147॥ जहर से पीड़ित मनुष्य की रक्षा जाङ्गुली, कुरुकुल्ला, तोतला और गरुड़ के अतिरिक्त कौन कर सकता है? कोई नहीं। किमर्थे सर्पदंशकरोति - आदिष्टाः कोपिता मत्ताः क्षुधिताः पूर्ववैरिणः । दन्दशूका दशन्त्यन्यान् प्राणिनस्त्राणवर्जितान्॥ 148॥ सामान्यतया सर्प-नाग किसी के आदेश से, क्रुद्ध होने से, मदोन्मत्त होने से, भूख से और पूर्वजन्म के वैर से और पालतू होने पर अपनी बराबर देखभाल न करने वाले दूसरे प्राणियों को काट लेते हैं। . . विषनिवारकप्रशंसाह ते देवा देवतास्ताश्च मन्त्रास्ते मन्त्रपाठकाः। अगदा अपि ते धन्या यैस्त्राणं प्राणिनां विषात्॥ 149॥ अतएव वह देव, वह देवता, वह मन्त्र, वे मान्त्रिक और वे औषधियाँ उत्तम समझनी चाहिए कि जो जीवों को विष से बचा सकती हैं। विषार्तस्याङ्गिनः पूर्व विमृश्यं काललक्षणम्। अपरं तज्जीवितव्यचिह्न तदनु मन्त्रिणः॥ 150॥ विष से पीड़ित मनुष्य का काल-लक्षण (जिस समय विष चढ़ा उस समय कैसा था वह) प्रथमतया देखना चाहिए। इसके बाद जीवन के लक्षण देखें और फिर गारुड़ी विद्या के जानकारों, मान्त्रिकों को बुलाना चाहिए। वारस्तिथिर्भदिग्दंशा दूतो मर्माणि दष्टकः। स्थानं हंसप्रचाराद्याः कलाः कालनिवेदकाः॥ 151॥ वार, तिथि, नक्षत्र, दिशा, दंश, दूत (वैद्य अथवा मान्त्रिक को बुलाने जाने वाला), मर्मस्थान, विष से पीड़ित मनुष्य और हंसप्रचार-ये बातें काल के लक्षण बताने वाली हैं। अथ वारविचारः भौमभास्करमन्दानां दिने सन्ध्याद्वयेऽपि च। सक्रान्तिकाले दष्टश्च सक्रीडति सुरस्त्रिया॥ 152॥ यदि मङ्गलवार, रविवार और शनिवार के प्रभात समय, सन्ध्या को या सूर्य
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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