SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 199 रत्नपरीक्षाशास्त्र, स्वप्रशास्त्र, शकुनशास्त्र, मेघमालादि वृष्टिशास्त्र, अंगस्फुरणशास्त्र और अङ्गविद्या आदि का पूर्ण ज्ञान अवश्य करना चाहिए। स्मरकलाज्ञानार्थ वास्त्यायन च नाट्यार्थ भरतागमादीनां शास्त्रं - शास्त्रं वात्स्यायनं ज्ञेयं न प्रकाश्यं यतस्ततः। ज्ञेयं भरतशास्त्रं च नाचर्यं धीमता पुनः॥ 144॥ बुद्धिशाली पुरुष को वात्स्यायन रचित कामशास्त्र का ज्ञान लेना चाहिए परन्तु इसका यत्र-तत्र प्रचार नहीं करना चाहिए। नाट्यविद्या के लिए भरताचार्य प्रणीत नाट्यशास्त्र को अवश्य जानना चाहिए परन्तु स्वयं नाटक नहीं करना चाहिए। गुरुमन्त्रग्रहणविधिं गुरोरतिशयं ज्ञात्वा पिण्डशुद्धि तथात्मनः। करमन्त्रान्यरित्यज्य ग्राह्यो मन्त्रक्रमो हितः॥ 145॥ विवेकी पुरुष को सदा गुरु का अतिशय कैसा है और अपने शरीर की शुद्धि कैसी है- इन दो बातों पर विचारकर गुरु से हितकारी मन्त्र ग्रहण करने चाहिए परन्तु क्रूरकर्म (मारण, मोहन, उच्चाटन, विद्वेषण, वशीकरण, आकर्षणादि कालाजादू) के मन्त्रों सर्वथा त्याग करना चाहिए। अथ विषविद्याविचारमाह" सत्यामपि विषाज्ञायां न भक्ष्यं स्थावरं विषम्। पाणिभ्यां पन्नगादींश्च स्पृशेन्नैव जिजीविषुः॥ 146॥ जीवन की आकांक्षा करने वाले पुरुषों को विष की आज्ञा होने पर भी कभी * सामुद्रिकशास्त्र के लिए समुद्रप्रोक्त शास्त्र, भोजराजीय सामुद्रिक, हस्तसञ्जीवन, हस्तलक्षण, करलक्खण, बृहत्संहिता आदि का अध्ययन करना चाहिए। रत्नशास्त्र के रूप में अगस्तिमत, अगस्त्यरत्नपरीक्षा बुधगुप्तकृत रत्नपरीक्षा, ईश्वरदीक्षित कृत रत्नपरीक्षा, ठकुरफेरू कृत रयणपरीक्खा , गरुडपुराण, स्वप्न, शकुन व अङ्गस्फुरण शास्त्र के रूप में वसन्तराजशाकुनम्,अक्षरचिन्तामणि, कष्टावलीचक्रम, कालचक्रम्, केरलीयप्रश्नम्, खञ्जनदर्शनफलम्, गृहगोधिकाविचार, पञ्चपक्षीप्रश्र, पञ्चपक्षीटिप्पण, पञ्चपक्षीनिदर्शनम्, पञ्चसार, पल्लिकादि विचार, पवनविजयम्, शकुनप्रदीप, प्रश्रविद्या, रघुवंश शकुनावली, बसन्तराजसारोद्धार, शकुनदिशाफलम्, शकुनप्रदीपचूडामणि, शकुन शास्त्रम्, शकुनसार, शकुनावली, शतसंवत्सरिः, शुभाशुभफलचक्रम्, स्वप्रचिन्तामणि, स्वरपञ्चाशिका, स्वप्राध्यायः, समरसार आदि का अध्ययन करना चाहिए। वृष्टिविज्ञान के लिए गुरुसंहिता, गार्गिसंहिता, मयूरचित्रम्, मेघमाला, बहत्संहिता, घाघभड़री की कहावतें. डाकवचनिका, मेघप्रबोध आदि का अवलोकन करना चाहिए। इसी प्रकार अङ्गविद्या के लिए प्राचीन अङ्गविजा, बहत्संहितोक्त अङ्गविद्याध्याय इत्यादि बहत उपयोगी हैं। **यह सर्पविद्या विषयक वर्णन तत्कालीन विषविद्या का द्योतक है। नाग से व्यक्ति सदा ही भयग्रस्त रहा है। महाभारत में गरुडाख्यान आया है और गरुडपुराण में गारुडविद्या का यत्र-तत्र वर्णन हुआ है। अगस्त्यसंहिता में भी सर्पविष निवारणोपाय मिलता है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy