SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 173 चतुर्विधमेघप्रकारमाह - मेघाश्चतुर्विधास्तेषां द्रोणाह्वः प्रथमो मतः। . आवर्तः पुष्करावर्तस्तुर्यः संवर्तकस्तथा॥46॥ मेघों के चार प्रकार कहे गए हैं। इनमें से पहले का नाम 'द्रोण' है, दूसरे का 'आवर्त', तीसरे का 'पुष्करावर्त' और चौथे का नाम 'संवर्तक' है। आषाढदशमी रोहिणीफलं आषाढे दशमी कृष्णा सुभिक्षाय सरोहिणी। एकादशी तु मध्यस्था द्वादशी दुःखदायिका॥47॥ आषाढ़ कृष्णा दशमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र हो तो उस वर्ष सुभिक्ष होता है और द्वादशी को रोहिणी हो तो दुष्काल कहना चाहिए। सूर्यराश्यात्परमङ्गलफलं रविराशेः पुरो भीमो वृष्टिसृष्टिनिरोधकः। भौमाद्या याम्यगाश्चन्द्र श्चोत्तरो वृष्टिनाशनः ॥48॥ सूर्य जिस राशि पर हो, उस राशि से आगे मङ्गल हो तो वह वृष्टि को रोकने वाला होता है और मङ्गल आदि ग्रह सूर्य राशि के दक्षिण भाग में और चन्द्र यदि उत्तर भाग में हो तो वृष्टि का नष्टकर्ता होता है। रेवत्यादिगतमङ्गलफलं रेवतीरोहिणीपुष्य मघोत्तरपुनर्वसु। सेवते चेन्महीसूनुरूनं तजगदम्बुदैः॥49॥ यदि रेवती नक्षत्र, रोहिणी, पुष्य, मघा, उत्तरा और पुनर्वसु- इन नक्षत्रों में मङ्गल हो तो देश में अल्प वृष्टिकारक होता है। .. गर्गमुनिवचनप्रमाणं चित्रास्वातिविशाखासु यस्मिन्मासे न वर्षणम्। तन्मासे निर्जला मेघा इति गर्गमुनेर्वचः॥50॥ जिस महीने में चित्रा, स्वाति और विशाखा- इन नक्षत्रों में वृष्टि नहीं हो तो उस मास में मेघ बिना जल के होते हैं, ऐसा गर्गाचार्य का कथन है। वाडवमुनिप्रमाणं * गर्गमुनि कृत गर्गसंहिता और मयूरचित्रकं में इस प्रकार के विचार रहे हैं। उत्पलभट्ट ने बृहत्संहिता की टीका में इन वचनों को यथास्थान उद्धृत किया है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy