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________________ 172 : विवेकविलास भौमस्याधो गुरुश्चेत्स्यादुर्वधोऽषि शनैश्चरः। • ग्रहाणां मुशलं ज्ञेयमिदं जगदरिष्टकृत्॥40॥ यदि कभी ऐसा योग बने कि मङ्गल के नीचे गुरु और गुरु के नीचे शनि हो तो 'मूसल' संज्ञक योग होता है। यह जगत् में अनर्थ उत्पन्न करने वाला होता है। शनिमीने गुरुः कर्के तुलायामपि मङ्गलः। यावच्चरति लोकस्य तावत्कष्टपरम्परा।।41॥ शनि यदि मीन राशि में, गुरु यदि कर्क राशि में और मङ्गल तुला राशिगत हो, तो उनकी अवधि तक जगत् में कष्ट निरन्तर रहते हैं। गुरोः सप्तान्त्यपञ्चद्विस्थानगा वीक्षका अपि। शनिराहुकुजादित्याः प्रत्येकं देशभञ्जनम्॥42॥ यदि शनि, राहु, मङ्गल और सूर्य- ये चार ग्रह पाँचवें और दूसरे स्थान पर स्वयं आए अथवा इनकी दृष्टि इन स्थानों पर पड़े तो उपर्युक्त चार ग्रहों में एक-एक ग्रह भी देशभङ्ग कर सकते हैं। शुक्रार्किभौमजीवानामेकोऽपीन्दुं भिनत्ति चेत्। पतत्सुभटकोटीभिः प्रेतप्रीता तदाजिभूः। 43॥ शुक्र, शनि, मङ्गल और बृहस्पति- इन में कोई भी ग्रह यदि चन्द्रमण्डल का भेदन करें, तो करोड़ों योद्धा संग्राम में कूद पड़े और इससे रणभूमि करोड़ो प्रेतों की बलि मिलने से सन्तुष्ट होती है। तत्र वृष्टिविचारं कुम्भमीनान्तरेऽष्टम्यां नवम्यां दशमीदिने। रोहिणी चेत्तदा वृष्टिरल्पा मध्याधिका क्रमात्॥44॥ कुम्भ और मीन संक्रान्ति के बीच रोहिणी नक्षत्र है, वह यदि अष्टमी के दिन आता है तो अल्पवृष्टि, नवमी के दिन आए तो मध्यम और दशमी को आए तो अधिक वृष्टि होती है। शाकस्त्रियो युतो द्वाभ्यां चतुर्भक्तोऽवशेषितः । समारुह्यल्पका वृष्टिविषमे प्रचुरा पुनः॥45॥ जो शक संवत्सर हो उसको तीन गुना करके उसमें 2 जोड़े और उस संख्या को 4 से भाजित करते हुए यदि सम संख्या शेष रहे तो अल्पवृष्टि और विषम संख्या शेष बचे तो प्रचुर वृष्टि होती है। * तुलनीय- मीनराशिगते मन्दे-कर्कटस्थे बृहस्पतौ। तुलाराशिगते भौमे तदा दुर्भिक्षमादिशेत्॥ (मयूर. 2, 49)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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