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________________ इस काल में जालोर ज्ञान - विज्ञान का बड़ा केन्द्र था। डॉ. दशरथ शर्मा का मत है कि जालोर नरेश उदयसिंह का मन्त्री यशोवीर था जिसके साथ उसका दरबार बहुत बड़े बुद्धिजीवियों का केन्द्र था । यदि उदयसिंह स्वयं इतना उच्च कोटि का तत्त्वदर्शन, तर्कशास्त्र और महाभारत जैसे विश्व-ज्ञानकोष का विद्वान न होता तो यह केन्द्र भी एक मध्य- श्रेणी का ही होता । उदयसिंह की कीर्ति एवं यश को देखने के • लिए भले ही एक हजार आँखों वाला इन्द्र न हो ओर दो हजार जिह्वाओं से गाने वाला ऐसा न हो, जैसा कि सूँधा पर्वत के अभिलेख में वर्णन हुआ है किन्तु यह अवश्य कहा जाएगा कि उसके शासनकाल में जालोर अपनी शक्ति के चरम शिखर पर था ।' उक्त ऐतिहासिक तथ्यों और अन्तः साक्ष्यों के आधार पर यह स्वीकारा जा सकता है कि जिनदत्त सूरि उदयसिंह के जीवनकाल में ही जालोर में बहुप्रसिद्ध थे । फिर, महाभारत जैसे कोष का उदयसिंह विद्वान् था और मुनिजी ने भी महाभारत के कतिपय नीति- मतों, गीता जैसे महाभारतोक्त ग्रन्थ के श्लोकों को विवेकविलास में किञ्चित् भेद के साथ महत्व दिया है और उनके शिष्य अमरचन्द्र ने तो महाभारत को असाम्प्रदायिक भाव से लिखा भी है, ऐसे में उनका उदयसिंह कालीन होना उचित प्रतीत होता है । विवेकविलास : ज्ञानात्मक संहिता ग्रन्थ ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ में साम्प्रदायिक आग्रह की अपेक्षा सर्वोपयोगी, सार्वभौम सिद्धान्तों को महत्व दिया है। इसीलिए उन्होंने कई विषयों को दृष्टिगत रखा और उन विषयों के नाना ग्रन्थों का आलोड़न - विलोड़न किया और लिखने की दृष्टि से जालोर को ही उपयुक्त माना । प्रस्तुत ग्रन्थ में आए विषयों के साथ प्राचीन ग्रन्थों के उद्धरण पाद टिप्पणियों के रूप में दिए गए हैं, यद्यपि ऐसे अधिकांश मत जैन ग्रन्थों में भी मिलते हैं किन्तु अन्य ग्रन्थों में भीं इसके उदाहरण कम नहीं है, अतः अन्य ग्रन्थों के उदाहरणों की अधिकता ही है । यह आचार्य श्री की उदार दृष्टि एवं उदारचरितां व्यक्तित्व को प्रकट करने में पर्याप्त है। पाद टिप्पणियों से इस ग्रन्थ पर अन्य ग्रन्थों के प्रभाव का भी अध्ययन किया जा सकता है। विवेकविलास बहुपयोगी ग्रन्थ है। इसमें 12 उल्लासों में कुल 1327 श्लोक हैं । अनुष्टुप श्लोकों के अतिरिक्त उपसंहार के रूप में उपजाति व अन्य छन्दों का प्रयोग हुआ है। इसमें दिवस के विविध प्रहरों में करने योग्य श्रावकाचार का वर्णन हैं किन्तु स्वर- - नाड़ी विचार, ज्योतिष, सामुद्रिक, देवमन्दिर निर्माण, वास्तु कार्य के 1. राजस्थान थ्रू दी एजेज, पृष्ठ 638 एवं अर्ली चौहान डायनेस्टीज् पृष्ठ 175 xii
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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