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________________ इसके अतिरिक्त, यदि विवेकविलास के अन्तः साक्ष्यों पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि यह रचना जाबालिपुर (वर्तमान जालोर, राजस्थान) के दुर्ग में रची गई । उस समय जालोर का शासक सोनगरा चौहान उदयसिंह था । ग्रन्थ की पुष्पिका में आया है कि चाहुमान (चौहान) वंशरूप सागर को उल्लास देने के निमित्त चन्द्रमा के समान उदयसिंह नामक जाबालिपुर का राजा है । उक्त उदयसिंह भूपति का बहुत विश्वासपात्र और उसके भण्डार की रक्षा करने में निपुण 'देवपाल' नामक महामात्य है, जो बुद्धिरूप नन्दनवन में चन्दन जैसा अर्थात् बड़ा बुद्धिशाली है। सभी धर्मों का आधार, ज्ञानशाली लोगों में अग्रगण्य, समस्त पुण्यों का वासस्थल, समस्त सम्पदाओं का आकरस्थल - ऐसा पवित्र, बुद्धिमान, विवेक से विकास प्राप्त करने वाले मन का धारक और वायड वंश में उत्पन्न हुआ 'धनपाल' नामक देवपाल का प्रसिद्ध पुत्र हुआ । धनपाल के मन को सन्तुष्ट करने के निमित्त श्रीजिनदत्त सूरि ने इस 'विवेकविलास' ग्रन्थ की रचना की है।' • ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि उदयसिंह के चार अभिलेख मिले हैं जो क्रमश: 1205 ई., 1217 ई., 1248 ई. और 1249 ई. के हैं । इस आधार पर उसका समय 1205 ई. से 1249 ई. तक निर्धारित होता है किन्तु खरतरगच्छ पट्टावली के प्रकाश में आने पर उदयसिंह का काल लगभग 8 वर्ष और आगे बढ़ जाता है । ' डॉ. हुकुमसिंह भाटी का मत है कि यह अपने समय का शक्तिशाली शासक था। उसने चौहान वंश की खोई हुई सत्ता को पुनः अर्जित करने के लिए विस्तारवादी नीति का सहारा लिया और उत्तर-पूर्वी मारवाड़ में मुस्लिम सेनाओं पर टूट पड़ा व अपने को एक बृहद् साम्राज्य का स्वामी बना लिया। गुलामवंशीय दिल्ली का शासक इल्तुतमिश भी पूरी तरह इस चौहान शासक की शक्ति को नहीं तोड़ सका । 1. यथा— चाहुमान्वयपोथोघि संवधर्नविधौ विधुः । श्रीमानुदयसिंहोऽस्ति श्रीजाबालिपुराधिपः ॥ तस्य विश्वाससदनं कोशर क्षाविचक्षणः । देवपालो माहामात्यः प्रज्ञानन्दनचन्दनः ॥ आधार: सर्वधर्माणामवधिर्ज्ञानशालिनाम् । आस्थानं सर्वपुण्यानामाकरः सर्वसम्पदाम् ॥ प्रतिपन्नात्मजस्तस्य वायडान्वयसम्भवः। धनपालः शुचिर्धीमान् विवेकोल्लासिमानसः ॥ तन्मनस्तोषपोषाय जिनोद्यैर्दत्तसूरिभिः । श्रीविवेकविलासाख्यो ग्रन्थोऽयं निर्ममेऽनघः ॥ (विवेकविलास पुष्पिका 5-9) प्रसिद्ध विद्वान् अगरचन्द नाहटा, बीकानेर ने धनपाल का नाम धर्मपाल माना है । (शोधसाधना, सीतामऊ 1982 में प्रकाशित लेख पृष्ठ 26 ) 2. बॉम्बे गजेटियर भाग 1, पृष्ठ 474-476 तथा एपीग्राफिया इण्डिका 11, पृष्ठ 55-56 3. डॉ. दशरथ शर्मा : अर्ली चौहान डायनेस्टीज् पृष्ठ 167 4. सोनगरा व साचोरा चौहानों का इतिहास पृष्ठ 41-42 xi
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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