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________________ समता बदलता है अत: उन पर उपेक्षा रखने के सिवाय और क्या किया जा सकता है। इन्द्रिय विषय पर समता चेतनेतरगतेष्वखिलेषु, स्पर्शरूपरवगंधरसेषु । साम्यमेष्यति यदा तवचेतः, पाणिगं शिवसुखं हि तदात्मन् ।।१७।। ___ अर्थ हे आत्मा ! जब तेरा चित्त सब ही चेतन, अचेतन पदार्थों में रहे हुए स्पर्श, रूप, शब्द, गंध और रसों में समभाव हो जाएगा तब मोक्ष सुख अपने हाथ में आया हुआ ही जानना ॥ १७ ॥ .. स्वागतावृत्त देव लोक में सबसे प्रबल देव को इन्द्र कहते हैं । वैसे ही इस मृत्य लोक में सबसे प्रबल, दुर्जय जो पांच देवियां हैं उन्हें इन्द्रियां कहते हैं। इनको जीतना अत्यंत कठिन है। स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, कर्णेन्द्रिय, इन पांचों देवियों के विषय हैं-स्पर्श, रस, गंध, रूप और शब्द । मुलायम बिस्तर, रेशमी वस्त्र, ऋतुओं के अनुकूल परिधान (पोशाक) मांसल शरीर ये स्पर्शनेन्द्रिय को प्रिय है, स्वादिष्ट भोजन, आधुनिक पेय, चटपटी चटनियां, विदेशी डब्बों की मिठाइयां, (चाहे वे अभक्ष ही क्यों न हों) अनेक प्रकार के रस, फल ये रसेन्द्रिय को प्रिय हैं; सुगंध से महक उठने वाली भभकादार वस्तुएं इत्र, तेल, फूल, गुलदस्ते, घ्राणेन्द्रिय को प्रिय हैं; सुन्दर स्त्रिएं, आधुनिक नवीनतम परिधानों से परिस्कृत अर्धनग्न, नागिन के सदृश वेणी जो एक आगे और एक पीछे लटकती हो, पाऊडर से मुखाकृति दीप्त हो,
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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