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________________ ४० अध्यात्म-कल्पद्रुम होठ लाल हों, भुजाएं मूसल सदृश घूमती हों, अंग अंग नजर आता हो, यह चक्षुरिन्द्रिय को प्रिय है; नवीनतम राग रागनियां, सिनेमा तरज़ के अश्ली गाने जो २-३ वर्ष की आयु के बच्चे भी गुनगुनाते रहते हैं, कर्णेन्द्रिय को प्रिय हैं । यदि इन पांचों विषयों के विपरीत विषय आत्मा ग्रहण करना चाहता है तो ये देवियां नाग की तरह फुकारा करती हैं, मन महाराजा से शिकायत कर आत्मा की बात को नहीं मानने देती हैं। अतः जो जड़ चेतन के विषयों में समभाव हो जाता है, अनुकूल प्रतिकूल विषयों की वास्तविकता को समझ कर उनका नियंत्रण रखता है, फिर मोक्ष तो उसके हाथों में ही है । जैसे शक्तिशाली घोड़े लगाम द्वारा वश में किये जाते हैं और मानव को अत्यंत उपयोगी होते हैं वैसे ही शक्तिशाली इन्द्रियों को भी वश में रखकर अपना भला किया जा सकता है। विपरीत इसके जिस तरह अनियंत्रित घोड़े रथ को खड्डे में गिरा चकनाचूर कर देते हैं, सवारियों को प्राण भय उपजाते हैं, एवं संकटापन्न स्थिति उपस्थित कर देते हैं वैसे ही अनियंत्रित प्रबल इन्द्रियां भी आत्मा को कुमार्ग पर ले जाकर नरकादि में पहुंचा देती हैं, भव परम्परा को बढ़ाती हैं । अतः नियंत्रण आवश्यक है। शरीर सुख लोलुपी हाथी, स्पर्शनेन्द्रिय के वशीभूत होकर हथिनी के पीछे खड्डे में गिर कर प्राण देता है; रसलोलुपी भंवरा, कमल के कारागार में बद्ध होकर हाथी के मुंह में चला जाता है; सुगंध के आकर्षण से कोड़ियां-मकोड़े घृत तेल में डूब मरते हैं या दूध दही में गिर कर प्राण देते हैं; रूप लोलुपी पतंगिए, दीपक से एक पक्षी प्रेम कर (विरह)
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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