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________________ अध्यात्म-कल्पद्रुम समता का अमृत पिलाने वाले गुरु की सेवा कर, अन्य प्रपंचों के शास्त्रों को छोड़कर त्याग वैराग्य युक्त समता का पाठ पढ़ाने वाले शास्त्रों का अध्ययन कर और समता की पुष्टि करने वाले तत्त्व का चिंतन कर। श्री उमास्वातिजी ने कहा है :-जिस जिस भाव से वैराग्य भाव की पुष्टि होती हो (उसका पोषण होता हो) वही भाव भाने के लिए मन वचन और काया से अभ्यास करना चाहिए। यह ग्रंथ-समतारस का नमूना समग्रसच्छास्त्रमहर्णवेभ्यः, समुद्धृतः साम्यसुधारसोऽयम् । निपीयतां हे विबुधा लभध्वमिहापि मुक्तेः सुखवणिकां यत् ।।६।। ___ अर्थ-यह समता-अमृत का रस सभी बड़े बड़े शास्त्र समुद्रों में से निकाला गया है। हे पण्डितजन ! आप यह रस पीजिये और मोक्ष सुख का नमूना यहीं प्राप्त कीजिये। इंद्रवजा विवेचन–समता-अमृत सब उत्तम शास्त्रों का निचोड़ है, अतः सब शास्त्रों के सारभूत अमृत को हे विद्वानों आप पियें और मोक्ष का सुख कैसा होता है उसका थोड़ा सा अनुभव आपको यहीं इसी भव में मिल सकेगा। ' समताधारी का स्वरूप बताते हुए अनुभवी योगी श्रीमद् कपूरचंदजी (चिदानंदजी) महाराज कहते हैं कि :जे अरि मित्त बराबर जानत, पारस और पाषाण ज्युं होई; कंचन कीच समान अहे जस, नीच नरेश में भेद न कोई।
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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