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________________ साम्य सर्वस्व ३६७ रहता है, अपने स्त्री पुत्र आदि की आपत्ति पर ही दुःख और अन्य दुःखी जीवों पर उपेक्षा रहती है तब तक समता नहीं आ सकती । अपने पुत्र के जरा से गिर जाने पर खूब चिंता करते हुए उसकी संभाल करना और दूसरे के पुत्र के तीन मंजिल पर से गिरने या मोटर के नीचे दब जाने पर देखते हुए भी खेद न होना, उसका साधारण सा भी उपचार कराने की भावना न होना वही तो. ममता है । सम्पत्ति आने पर फूले हुए फिरना, उसका प्रदर्शन करना और विपत्ति आने पर उसका रोना हर जगह रोते रहना यही तो ममता है । हे आत्मा तू सभी अवस्थाओं में समता रख तभी तुझे मोक्ष के सुख का साक्षातकार होगा । समता के कारण रूप, पदार्थों का सेवन कर तमेव सेवस्व गुरूं प्रयत्नादधीष्व शास्त्राण्यपि तानि विद्वन् । तदेव तत्त्वं परिभावयात्मन्, येभ्यो भवेत्साम्यसुधोपभोगः ||५|| प्रयत्न से सेवा कर, तत्त्व का चिन्तन मिलता हो ||५|| उपजाति अर्थ - हे आत्मा ! तू उसी गुरु की उन्हीं शास्त्रों का अभ्यास कर और उसी कर जिससे तुझे समतारूपी अमृत का स्वाद विवेचन हे आत्मा ! चौरासी लाख जीवा योनि में भटकते हुए तुझे सद्भाग्य से ( मनुष्य योनि मिलने के पश्चात तेरी ) धर्म के प्रति रुचि उत्पन्न हुई है और तू मोक्ष की अभिलाषा रखता है अतः हे भाई तू ढोंगी गुरु को छोड़कर
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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