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________________ ३६६ अध्यात्म-कल्पद्रुम लाकर नि:संगपन प्राप्त कर । हे विद्वान् ! तू जान ले कि दुःख का मूल ममता ही हैं और सुख का मूल समता ही है । उपजाति विवेचन-जब तक हमारा चित्त घर हाट बाग बगीचे, धन, माल स्त्री, पुत्र, मान सनमान में ही लगा रहता है तब तक हम उनके संगी हैं और वे हमारे संगी (साथी) हैं। इनमें लगा हुवा मन आत्मा या परमात्मा में नहीं लग सकता है । अतः शास्त्रकार कहते हैं कि इस संग का त्याग करने के लिए तू समता भाव ला। समता का तात्पर्य यह है कि सभी इष्ट अनिष्ट वस्तुओं में समान भाव रखना। यह समता ही सुख का मूल है और प्रत्येक वस्तु में ममता-मेरापन-अहंभावही दुःख का मूल है। समता का नमूना स्त्रीषु धूलिषु निजे च परे वा, संपदि प्रसरदापदि चात्मन् । तत्त्वमेहि समतां ममतामुग् येम शाश्वतसुखाद्वयमेषि ॥४॥ अर्थ स्त्री में और धूलि में, अपने में और पराए में, सम्पत्ति में और विस्तृत विपत्ति में, हे आत्मा ! (तत्व को पहचानकर) समता धारण कर और ममता को छोड़ दे, जिससे शाश्वत सुख के साथ तेरा एकाकार होगा ॥ ४ ॥ _ स्वागता विवेचन शाश्वतसुख-मोक्षसुख की प्राप्ति के लिए भी समता ही आवश्यक है । मन में जब तक अपना-पराया भाव
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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