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________________ अध्यात्म- कल्पद्रुम श्रर्थ—मेरी जानकारी के अनुसार तो हे आत्मा ! इस प्रकार के संयम और तप से (गृहस्थ के पास से लिए पात्र, भोजन आदि ) वस्तुओं का किराया भी पूरा नहीं होता है । तब दुर्गति में गिरते हुए तुझे शरण किसका होगा ? परलोक में सुख कौन देगा ? उसका तू विचार कर ॥ ६॥ वसंततिलका २८४ विवेचन - गृहस्थ अपनी आवश्यकताओं का ध्यान न रखते हुए खाने पहनने व कभी २ कीमती वस्तुएं तक साधु को निसंकोच दे देते हैं जिसका बदला वे साधु से नहीं चाहते हैं । उनकी भावना यही रहती है कि ये धर्मात्मा स्वयं का व अन्य का कल्याण करने में तत्पर हैं अतः हमें इनकी आवश्यकताएं श्रद्धापूर्वक पूरी करनी चाहिए । यदि हे साधु, तू तप संयम आदि नहीं करता है तो फिर उन गृहस्थों के ऋण से कैसे उऋण होगा और ऋण चुकाने योग्य संयम तप आदि की मात्रा को और अधिक नहीं बढ़ाता है तब तुझे दुर्गति में गिरते वक्त शरण किसका होगा, परलोक में सुख किस धर्म पूंजी से मिलेगा ? यह तेरा वेश बुरे कामों से अटकाकर धर्म काम में प्रवृत्त होने के लिए सहायक रूप है इस वेश को देखकर गृहस्थ लोग अनायास ही तेरे पास हाथ जोड़ते पांव पड़ते आते हैं अतः तू उनको स्वयं प्रचरित सद्धर्म का मार्ग बताकर उनसे प्राप्त उपाधि व भोजन वस्त्र के ऋण से मुक्त होता जा । परन्तु मात्र इतने से संतुष्ट न होकर कुछ अधिक तप कर जिससे तेरे पास उनके ऋण चुकाने के बाद
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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