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________________ यतिशिक्षा २८५ भी अच्छा धर्म का खजाना बच जाय जो तुझे नरक निगोद के दुःखों से बचावे । बरताव बिना का लोकरंजन, बोधिवृक्ष का कुहाड़ा, संसार समुद्र में पात किं लोकसत्कृतिनमस्करणार्चनाद्य, रे मुग्ध तुष्यसि विनापि विशुद्धयोगान् । कृतन भवांधुपतने तव यत्प्रमादो, बोधिद्रुमाश्रयमिमानि करोति पशून् ॥ ७ ॥ अर्थ तेरे त्रिकरण योग शुद्ध नहीं हैं, फिर भी लोग तेरा आदर सत्कार करते हैं, तुझे नमस्कार करते हैं अथवा तेरी पूजा सेवा करते हैं तब हे मूढ़ ! तू क्यों संतोष मानता है ? संसार समुद्र में गिरते हुए तुझे आधार ही केवल बोधिवृक्ष का है उस वृक्ष को काट डालने में नमस्कार आदि से होता हुवा संतोष आदि प्रमाद, इसको (लोकसत्कार आदि को) कुहाड़ा बनाते हैं ॥ ७ ॥ वसंततिलका विवेचन-लोग तो ऊपरी वेश से ही तुझे साधु माने हुए हैं यदि तेरा मन अस्थिर है वचन पर अंकुश नहीं है और काया तेरे वश में नहीं है तो तू लोगों के वंदन पूजन सत्कार से संतुष्ट होकर अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मारता है अथवा संसार की गर्मी से बचाने वाले बोधिवृक्ष पर इस वंदन पूजन की अभिलाषा व संतोषरूपी कुल्हाड़ी से तू प्रहार कर मोक्ष की शीतल छाया को नष्ट कर रहा है व अपने आधार को नष्ट कर रहा है।
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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