SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्तदमन १८३ मुंह से राम राम जपने से क्या लाभ होता है । "मुख में राम, बगल में छुरी ॥" मनोनिग्रह बिना के दानादि धर्मों का व्यर्थपन दानश्रुतध्यानतपोऽर्चनादि, वृथा मनोनिग्रहमंतरेण । कषायचिंताकुलतोज्झितस्य, परो हि योगो मनसो वशत्वम् ।।६।। अर्थ दान, ज्ञान, ध्यान, तप, पूजा आदि सभी मनोनिग्रह के बिना व्यर्थ हैं। कषाय से होने वाली चिंता और प्राकुलव्याकुलता से रहित, ऐसे प्राणी के लिए मन को वश करना महायोग है ॥ ६ ॥ ___उपजाति विवेचन-दान पांच प्रकार के होते हैं। किसी जीव को मरने से बचाना, अभय दान । सुपात्र को, सुसमय में, उत्तम वस्तु का सुरीति से दान करना-सुपात्रदान । दीन दुःखी पर दया कर दान देना-अनुकंपादान। देव गुरू के निमित्त या प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्यों में दान देना- उचित दान । यश कीर्ति के लिये दान देना-कीर्तिदान । प्रथम के तीन उत्तम कोटि के हैं जब कि बाकी के दो संसार के भोगफल देने वाले हैं। ___ ज्ञान में पठन पाठन, श्रवण, मनन आदि; ध्यान में धर्मध्यान शुक्ल ध्यान आदि। तप बारह प्रकार का है। पूजा, अष्ट प्रकारी; सतरभेदी चौसठ प्रकारी, नवाणु प्रकारी आदि द्रव्य पूजा। ऐसे ज्ञान, ध्यान, पूजा आदि सब करते हुए यदि मन वश में है तभी सब सार्थक हैं, नहीं तो सब निरर्थक हैं ।
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy