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________________ १८४ अध्यात्म-कल्पद्रुम श्री विनय विजयजी महाराज ने लिखा है : पढ़ो हो बहुत पाठ तप करो जने पहार । मनवश किए बिनु तप जप बश हैं ।। अर्थात चाहे जितना पढ़ो, खूब तप करो, परन्तु मन को वश किए बिना सब तप जप निरर्थक है । जिसने मन साधा उसने सब साधा जपो न मुक्त्यै न तपो द्विभेदं, न संयमो नापि दमो न मौनम् । न साधनाद्य पवनादिकस्य, किं त्वेकमंतःकरणं सुदान्तम ॥७॥ अर्थ न तो केवल जाप करने से ही मोक्ष मिलता है, न दोनों तरह के तप करने से ही मिलता है, न संयम, दम, मौन धारण, या पवनादि की साधना ही मोक्ष दे सकती है, परन्तु अच्छी तरह से वश किया हुवा अकेला मन ही मोक्ष को देता है ॥ ७ ॥ उपजाति - विवेचन-जिसने मन को वश में कर रखा है उसके लिए मोक्ष दूर नहीं है लेकिन जिसका मन निरंकुश है वह जो कुछ भी करता है सब व्यर्थ जाता है । परम योगी आनंदघनजी ने कुथुजिन स्तवन में लिखा है कि:मम साध्यं तेणे सघलु साध्यु, एह बात नहिं खोटी । ऐम कहे साध्यं ते नवि मानुं एक ही बात छे मोटी ।। होकुंथुजिन ॥ जो मन के वश हवा दह भटका लब्ध्वापि धर्म सकलं जिनोदितं, सुदुर्लभं पोतनिभं विहाय च । मनः पिशाचग्नहिलीकृतः पतन, भवांबुधौ नायतिदृग् जडो जनाः ८
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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