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________________ (३२) शतपदी भाषांतर. कने आचारांगनी चूळिकाओ, आंवश्यक-निशीथ-वृहत्कल्प -व्यवहारना पीठो, निशीथन प्रलंवप्रकृत तथा ठवणाप्रकृत, वृहत्कल्पनुं मलंबप्रकृत तथा मासकल्पप्रकृत, व्यवहारर्नु आलोचनाप्रकृत तथा व्यवहारप्रकृत, तथा अतिदेशथी एटले या. वत् शब्दथी आवता शतक, वर्ग, अध्ययन के उद्देशाओ. ६ संग्रहणी, क्षेत्रसमास, तथा कर्मग्रंथ. विचार २३ मो. प्रश्नः-वृषभकल्पनाए साधुए वसति लेवी ए वात मा. नो छो के नहि. ?. उत्तरःमानीएज छीए. अने जो तेवी वसति मळी शकती होय तो शुं कोइ बीजी विरुद्ध वसतिमा रहे ? ( बाकी अपवादनी वात जूदी छे.) इहां वृषभ कल्पनानो विचार आ रीते छे के जे गाममा र. हेतुं तेना पूर्व के उत्तर दरवाजा सन्मुख ते दरवाजा ऊपर मुख आवे ए रीते डाबे पासे बेठेलो बळद कल्पवो. त्यां ज्यां शीगडां खूचे त्यां रहेतां कलह थाय, पगोमा रहेतां वळतुं स्थान न मळे, पेट नीचे रहेता रोग थाय, पुच्छ आवे त्यां रहेतां फंट पडे, स्कंध के पीठनी स्थळे रहेतां बोजो ऊचकवो पडे, तथा पेटना स्थळे रहेतां घात थाय, माटे त्यां न रहे. किंतु मुखमूळमा रहेतां खानपान मळे, तथा मस्तके अने कोटना स्थळे रहेतां पूजा सत्कार मळे माटे सां रहे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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