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________________ शतपदी भाषांतर. विचार २४ मो. प्रश्नः - साधुए भोजन करी दिशाए जबुं कहेल होवाथी त्रीजा पहोरेज दिशाए जवं जोइये, छतां तमे आगल पाछल केम जाओ छो? उत्तर :- तमे कहो छो तेम कंइ एकांत नथी. कारण के ओघ - नियुक्तियां काळसंज्ञा तथा अकाळसंज्ञा ए बन्नेनी विधि बतात्री छे. पण कंइ एम नथी कह्युं के अकाळे बहिर्भूमिए नहि जनुं . कारण के ते ग्रंथमांज कहेल छे के आ देहमां वात, मूत्र, तथा पुरीषरूप त्रण शळ्य रहेल छे तेनो वेग अटकाववो जोइये नहि. ( ३३ ) विचार २५ मो. प्रश्नः - पेलीवर्षादमां ऋण दिन सूधी साधुने जमवुं पण न कल्पे एवी बात छे के नहि ? उत्तर:- एवी वात छेज नहि. किंतु ए तो अणसमजपनी बात छे. बाकी खरी बात तो आ प्रमाणे छे. वरशाद त्रण प्रकारनी छे: (१) जेमां बुद्बुद थाय ते बुदबुददृष्टि. ते वरसतां त्रण दिवस पछी सघळु अप्कायमय थइ जाय. (२) जेमां बुदबुद न थाय ते तद्वर्जवृष्टि. ते वरसतां पांच दिवस पछी संघळु अकायमय थइ जाय. (३) मां फुसार पडे ते फुसितवृष्टि. ते वरसतां सात दिन पछी सघळु अप्कायमय थइ जाय. माटे जो ए बुदबुद वगेरा वरशादो त्रण, पांच, के सात दिन उपरांत पण निरंतर पड्या करे त्यारे साधुए सर्व चेष्टाओ बंध ૫ .
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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