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________________ शतपदी भाषांतर. ( १८७) भाणेजाने वांदणा कर्या छे. (शंका समाधान.) कोइ बोलशे के आवश्यकनियुक्तिमां लख्युं छे जे "आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, तथा गणावच्छेदकने वांदणा देवा." माटे ए पांचनेज वांदणा दइ शकाय. तेने ए उत्तर छे के ए गाथा कंइ सामान्यपणे वांदवा योग्य एटलाज छे एवो नियम पाडवा नथी, किंतु आचार्यादिक पांच जो अल्पपर्यायवाला होय तोपण तेओ वांदवा योग्य छ एम बताववा अर्थे रहेली छे. का. रण के ए गाथा ऊपर चूर्णिकार तथा टीकाकार व्याख्या चलावतां लखे छे के ए आचार्यादिक पांच अवमरानिक होय एटले के पोताथी हीनपर्यायवाला होय तोपण तेमने वांदवा. ___ माटे ऊपरना अनेक पुरावाथी सिद्ध थाय छे के सर्व साधुओने पण द्वादशावर्त्तवांदणा आपवा. विचार ११५ मो. ( बीजं वांदणुं पादपतितज देवू. ) वांदणामां बीजं वांदणुं पादपतित रहीनेज देवु. तेना पुरावा . नीचे मुजब छे. ___“पेलुं वांदणुं दइ त्यांज ऊभी अर्धी काया नमावीने वांदणा सूत्र उच्चरवं. मात्र इहां एटलो विशेष छे के “आवस्सियाए" ए पद नाहि बोलतां "खामेमि खमासमणो" इसादि सूत्र पादपतित रहीनेज बोलवा. . (पडावश्यकत्ति.) .. "एम वांदीने ऊठी बे हाथे रजोहरण राखी अर्धी काया नमावीने पोताना दोष आलोवे." (आवश्यक नियुक्ति.) "परम विनयी त्रिकरण शुद्ध कृतिकर्म करीने वांदी ऊठी
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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