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________________ ( १८८) शतपदी भाषांतर. 'ने बे हाथे रजोहरण राखी अर्धी काया नमावी जे रत्नाधिक होय ते संयत भाषाए जेम गुरु सांभळे तेम, वधते संवेगे, मायामद छोडीने पोतानी विशुद्विना निमित्ते पूर्वचिंतित दोष आलोवे छे. (पांखीसूत्र टीका.) ए रीते विनय सांचवी ऊठीने जे रत्नाधिक होय ते बे हाथे रजोहरण लइ काया नमावेल राखी जेम गुरु सांभळे तेम स्पष्टपणे संयत भाषाए पूर्व रचित दोष आलोवे. (आव-चूणि.) द्वादशावर्त कृतिकर्म करी पादपतित रह्यो थको मस्तके अं. जलि थापी वीनवे. (जीतकल्प लघुचूर्णि.) विचार ११६ मो. ( स्त्रीओए ऊभा रहीनेज वांदवू. ) प्रश्नः-साध्वी तथा श्राविकाओ ऊभा रही केम वांदे छे.? उत्तरः-सिद्धांतमां साध्वी तथा श्राविकाओने ऊभा रही. नेज वांदवानुं लखेल छे. तेना पुरावा लखीये छीये. . निशीथचूर्णिमां कडं छे के ज्यां साध्वीओ साधुने वांदणा आपे त्यां बधी ऊभी रहीनेज आवर्त करे, पण जमीनपर राखेला रजोहरण ऊपर माथु नहि पाडे. केटलाक आचार्य कहे छे के उभी रही थकीज रजोहरणमां माथु नमाने. (निशीथचूर्णि.) निरयावलीमां काळीदेवीए तथा भगवती सूत्रमा मृगावती देवी, तथा देवानंदा ब्राह्मणीए पण वीर प्रभुनी सामे परिवार सहित ऊभा रहीनेज पर्युपासना करेली देखाय छे.अने देवानंदाना अधिकारे टीकामां पण एवोज अर्थ करेल छे के " ऊभा थका एटले बेशवा वगर ऊभा थका."
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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