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________________ शतपदी भाषांतर. ( १६३ ) वळी वस्त्रो जूलीख तथा रागना हेतु गणीने कई चारित्रना घातक लेखाय नहि. कारण के एम तो शरीरमां पण जूलीख तथा राग थवानो संभव रहेल छे छतां अध्यात्मशुद्धि होय तो चारित्रनो घात नथी थतो तेम वस्त्रो विषे पण जाणवुं. अने अध्यात्मशुद्धि नहि होय तो तो नग्न छतां पण चारित्र नहि टकशे. वळ तीर्थंकर नग्न हता एम कही तेमनी नकल करवी पण वाजवी नथी केमके बधी वाते जो तेमनी नकल करवी मानशो तो तेओ तो जेम गुरूपदेश विना स्वयंबुद्ध थया हता, छद्मस्थप णामां उपदेश के दीक्षा न होता आपता, तेम तमोने करवुं पडशे. वळी उचित वस्त्रो छतां पण चारित्रधर्म रही शकेज छे. कारण के वस्त्रो पण शरीर तथा आहारना मुजब चारित्रना मददगार थई शके छे. कोइ बोलशे के तीर्थंकर ज्यारे वस्त्रपात्र नहि राखता सारे तेमना शिष्योए शा माटे राखवा, कारण के गुरुनुं जेवुं लिंग होय तेवुंज चेलाए पण करवुं ए न्यायसिद्ध छे; तेनुं ए उत्तर छे के तीर्थकरनी वात जूदी छे केमके तीर्थंकरोनी अंजलि अछिद्र, अने तेमां पाणीनी कदाच चंद्रसूर्य लगी शिखा करवामां आवे तोपण एक टीपुं पण नीचे नहि पडे एवी हती तथा तेओ चतुर्ज्ञानी होवाथी त्रसहित तथा त्रसरहित आहारपाणी जाणीने निर्दोषज लेता माटे तेमने पात्रानी जरुर न हती. अने वस्त्र बाबत तो एम वात छे के सर्वे तीर्थंकरो " अमारे सोपधिधर्म एटले उपकरण राखी थतो धर्म चलाववो ले. " एम धारी दीक्षा लेती बेला एक वस्त्र लेज छे; अने दीक्षा लीघा पछी तो तीर्थंकर सर्वपरीषद समर्थन होय छे एटले कपडानी जरुर नथी रहेती तेथी ते वस्त्र गमे त्यां जतुं रहे छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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