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________________ ( १६४) शतपदी भाषांतर. हवे तमे गुरुनी नकल करवा चेलाने उस्केयु ते तो ऐरावणनी नकल करवा साधारण हाथीने उस्केरवा जेवू छे. छतां तमे तीर्थकरनीज नकल करवी इच्छो छो तो मठमां रहे, आधाकर्मी सेवई, तृणनी लंगोटी बांधवी, मोरपीछ कमंडलु राखवा, तथा छद्मस्थ छतां धर्मदेशना के दीक्षा देवी, इत्यादिक सर्व तमारे मूंकी देवा जोइये. दिगंबरो जिनकल्पिथी विरुद्ध छतां जिनकल्पिनाम धरेछे. ज्यारे तमे जिनकल्पिनीज नकल करो छो सारे कमंडलु, पिछिका, कपडानी मोजडीओ, पुस्तक, चोपडीओ, कवडीठवणी, पुस्तकपट; योगपट्टक, आसनपट्ट, तृणपटी (लंगोटी) वगेरा अनेक उपकरणो कां राखो छो, तथा गुंदर, नाळिएर वगेरा अनेक औषधो का संघरी राखो छो? कदाच कहेशो के पंचमकाळ होवाथी एटलो परिग्रह राखीये छीये; त्यारे संयमने मंददगार, लज्जा तथा शीतथी बचावनार, वस्त्रादिक उपकरणोए तमारी शी गुन्हेगारी करी छे ? वळी ज्यारे पोताने जिनकल्पिनीज नकल करवा मानो छो त्यारे स्त्रीओने पग पखालवा कां आपो छो? आर्याओ साथे एक ठेकाणे कां रहो छो? चैत्यमां कां रहो छो? आर्याओ पासे थी रसोई का करावो छो? पालखी वगेरापर कां चडो छो? ज्योतिष निमित्तादि विद्याओ कां चलावो छो? सचित्त फूलपत्र, जळ, चंदनकेशर, सोनारूपा तथा दूध घी वगेराथी पग कां पूजावो मनावो छो? सभामां बेशी व्याख्यान कां करो छो? दीक्षा कां आपो छो? घणा साधुओमां कां रहो छो? तथा हमेशां एकज ठेकाणे कां रहो छो?
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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