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________________ (१६२) शतपदी भाषांतर. बगेरा खाई जाओ छो तेम कई तीर्थकर करता न हता. वळी तीर्थकरना हाथमां तो पाणीना हजार घडा ढोल्या होय तोपण एक टीपु नहि गळे एवो तेमनो अतिशय छे; पण तमारा हाथथी तो छोकराओने पण हासी आवे एटली गलतर थाय छे ने तेथी हेठे कीडीकुंथुआ विराधाय छे तेमज पडता भोजनथी खरडाता शरीरने घोवानी पंचात ऊभी थाय छे. (वस्त्रादि देवानां फळ.) .. कोइ पूछे के शास्त्रमा जेम आहारपाणीना दातार वर्णव्या छे तेम वस्त्रादिकना दातार क्यां वर्णव्या छे, तेने ए उत्तर छे के भगवती तथा आवश्यकचूर्णि वगेरा अनेक स्थळे कयु छ के "श्रावको श्रमणनिर्ग्रथने प्रासुक अन्नपाणी, वस्त्र, औषध, पीठफलक तथा सय्यासंथारा आपे." माटे वस्त्रो पण संयमना उपकारक होवाथी साधुने देवामां लाभज छे. (अचेल शब्दनो अर्थ.) स्थानांगना नवमा अध्ययनमा कयुं छे के आक्ती चोवीसीना पद्मनाभस्वामी पार्छ अचेलकधर्म प्ररूपशे. तेनी टीकामां ते पदनो एवो अर्थ कर्यो छे के जिनकल्पिनी अपेक्षाए अचेलकधर्म एटले जेमां वस्त्र तदन नहि होय एवों धर्म, अने स्थविरकल्पिनी अपेक्षाए अचेलक शब्दे जूनां, मेला, अल्पमूल्य धोळां कपडां समजवां. कोइ कहेशे के कपडां छतां अचेल केम कहेवाय तेने एम जणाव के जेम घणां कपडां ऊतारी अल्प कपडां तथा फेंटो वींटी पाणीमां पेशनार पुरुष अचेल के नमज कहेवाय छे तेम इहां पण अल्पमूल्यवाळां कपडां ते कपडांना लेखामांज नहि लेवां. माटे वस्त्र छतां पण मूर्छारहित मुनि अचेल कही शकाय छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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