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करे छे एटले ते कांइ दुर्लभ नथी, परंतु निष्काम एवा तपनी ज प्राप्ति दुर्लभ ने आर्यकारी शास्त्रोमा जणावी छे.
तपना भेदो
to निष्काम एवा तपना बाह्य तथा आभ्यंतर ए वे भेदो तथा उभयना छ बाह्य अने छ आभ्यंतर मली द्वादश ( बार ) भेदो का छे. जे तप बाहेरथी शरीर आदिने सुकावी सुकावी क्षीण करे, लोको जेने सारी रोते देखी शके ने आश्चर्य पामे ते बाह्य अने जे अंदरना कषाय तथा रागादिकने क्षीण करी विषयादि वासनानो प्रलय करे तथा बहुधा सामान्य जनता जे तपने देखी न शके ते तपने आभ्यंतर तप को छे. आ उभय तप पैकी आभ्यंतर तप एकान्ततः कर्मक्षयकारी होवाथी ने प्रधान गण्यो छे, ज्यारे बाह्य तपथी तो सुविशुद्ध परिणामो वर्तता होय तो कर्मक्षय थाय अने न वर्तता होय तो न थाय माटे आ तपने तेटला अंशे गौण कह्यो छे. तथापि एटलुं तो चोक्कस जाणवुं के बाह्यतप जनताने प्राथ
मां नांखी बालजीवोने मुग्ध जरुर बनावी शके छे. निदान केबने तप कल्याणकारी होवाथी सर्वाशे आदरणीय जाणवा. कर्मक्षयना अर्थीए तो आ तपो अवश्य आचरवा जोइये. " विचित्र दलीलो
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अहीं आप विषयां घणाओनी एवी दृढ मान्यता छे के - आवो तप करवाथी आत्मा जरुर दुःखी थाय, अंदरना