________________
(६० ) उपदेशके मौन धारवू, उपदेशकपणानो मोह छोडी देवो ए बधारे उचित गणाय, बल्के लाभकारी ज थाय; अने तेम करबामां पोताने हानि थती होय तो अवश्य ग्रंथकारना कथन प्रमाणे प्रथम तेवू उच्च ज्ञान प्राप्त करवा कम्मर कसवी अने पछी उपदेश करवो जेथी उपदेशकनो मनोरथ सफल गणाय.
उपर दर्शित विषयनीज वधु पुष्टि माटे ग्रंथकर्ता भागळ वधीने अधिक खुलासो करे छे
यद् भाषितं मुनींद्रैः पापं ___ खलु देशना परस्थाने । उन्मार्गनयनमेतद्
भवगहने दारुणविपाकं ॥ १४ ॥ मूलार्थ-परमज्ञानीयोए-अन्यने उपकारी धर्मदेशना अन्यने आपवामां निश्चयथी पापकारी कही छे, कारण केअन्य योग्य देशना अन्यने प्रापवाथी उन्मार्गमां लइ जइ भवसमुद्रमा डूबावी भयंकर कटुकफल आपनारी बने छे.
स्पष्टीकरण-१३ मा श्लोकमां जे वात कही छे तेनुज अहीं ग्रंथकार स्पष्टीकरण करे छे. अन्य योग्य देशना अन्यने आपवामां सर्वज्ञो पाप कहे छे, अर्थात्-बाल योग्य देशना मध्यमने, मध्यम योग्य बुधने, बुध योग्य बाल अथवा मध्यमने अने मध्यम योग्य बालने ए रीते धर्मदेशना करवामां